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ज्ञान स्वरोदय |
[ ८ ]
सोय ।
पावक अरु आकाश पुनि, बायक लीजै जो कोई पूछै आयके, शुभ कारज नहि होय ||३८||
नाँहि ।
की
विधि
जल पृथ्वी थिर काज को, चर कारज को अग्नि वायु चर कार्य को, दहिने स्वर के रोगी की पूछे कोर, बैठे चंद धरती वायु स्वर चलें, मरे नहीं रोगी को परसंग जो, बाँये चंद बंध सूरज चलै, रोगी बहते स्वर से आयके, शून्य ओर जो पूछे परसंग वह, रोगी शून्य ओर से आय के, पूछै बहते तो निश्चय करि जानिये, रोगी को
नहि
श्वास ।
नास ||४३||
शून्य ओर सों आय के, पूछै
पंख ।
जेते कारज जगत के, सो सब सफल असंख ||४४ ||
बहते स्वर सों आय के, जो पूछे जेते कारज जगत के उलट होय बाँये स्वर कै दाहिने, जो कोइ पूरन पूछै पूरन ओर ही, कारज पूरन
संक्रान्ति लग्न |
सोय ।
वर एक को फल कहूं, तत मित जानै काल समय सोई लखै, बुरो भलो नग होय ॥४७॥
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पूछै
जीवै
जो
नहि बहते
माँहि ॥ ३९ ॥
ओर ।
कोर ॥४०॥
आय ।
नाँय ॥ ४१ ॥
जाय ।
ठहराय || ४२ ॥
शुन ओर ।
विधि कोर ||४५ ||
होय । सोय ||४६ ॥