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ज्ञान स्वरोदय। वृश्चिक सिंह वृष कुंभ पुनि, बाँयें स्वर के संग । चंद्र योग को मिलत हैं, थिर कारज परसंग ॥२८॥
तत्त्व परीक्षा । चित अपनो अस्थिर करै, नसिका आगे नैन । श्वासा देखै दृष्टि सों, तब पावे सुख चैन ॥२९॥ पांच घडी पांचों चले, अपनी अपनी चार ॥ पांच तत्व चलते मिले, स्वर विच लेहु निहार ॥३०॥ धरती अरु आकाश है, और तीसरो पौन । पानी पावक पांच ये, करे श्वास में गौन ॥३१।। पृथ्वी तत्त सोही चले, अरु पीरो रंग देख । द्वादश आंगुल श्वास में, सुरति निरति करि देख ॥३२॥ ऊपर को पावक चले, लाल रंग है भेष । चार हि आंगुल श्वास में, कहैं कबीर विशेष ॥३३॥ नीचे को पानी चले, श्वेत रंग है तास । सोलह आंगुल श्वास में, होय भूप अभ्यास ॥३४॥ हरो रंग है वायु को, तिरछा चालै सोय । आठ हि आंगुल श्वास में, रनजित निरमल जोय ॥३५॥ स्वर दोनों पूरन चले, बाहिर नहि परकास । श्याम रंग है तासको, सोई तत्त्व अकास ॥३६॥ जल पृथ्वी के योग में, जो कोइ पूछे बात । ससि घर में जो स्वर चलै, कहु कारज व्है जात ॥३७॥
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