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________________ जैसे -चौमासेको नदीयाँ बल कर समुद्रको जाय मिले. उस समैका बनाव की शोभा बीहारीलाल की कुछ बरनी नहीं जाती. को सब सोगार करे, नटवर भेख धरे, ऐसे मनभावने सुन्दर सुहावने लगते थे, कि ब्रजयुवती हुरि छबी देखते ही छक रही. तब मोहन विनकी क्षेम कुशल पूछ, रुठे हो बोले. कहो रात समै भूत प्रेतकी बीरीया भयावनी बाट काट उल्टे पुलटे वस्त्र-आभूषण पहने, अती घबराई, कुटुंबको माया. तज, ईस महा बनमें तुम कैसे आई. ऐसा. साहस करना नारी से उचित नहीं. अध्याय ३० . (४) इसमें कोतनी एक दूर जाय के देखते क्या है, की कंसके धोबी घोऐ कपड़ों की लादीया लादे, पोटें मोटें लीये, मदपीये, रंगराते कंस जस गाते, नगरके बहारसें चले आते हैं. उन्हें देख श्री कृष्णचंदने बलदेवजी से कहा की, भैया, इनके सब चीर छीन लीजीये, और आप पहर, ग्वाल वालोंकों पहराय, बचें सो लुटाय दीजिये. भाईको यों सुनाय सब समेत धोबीयोंके पास जाय हरि बोले:-हमको उजल कपड़ा देहू, राजही मीली आवे फीर लेहू॥ जो पहेरावनी नृपसौं पैहे, तामें तें कछु तूमको दैहै। इतनी बातके सुनते ही वीनमें से जो बडा धोबी था सो हंसकर कहने लगा. राखें घरी बनाय, व्है आवौ नृप द्वारलौं तब बोजी पट आय, जो चाहो सो दीजियोबन बन फीरत चराबन गैया, अहीर जाति कामरी उद्वैया, नटको भेस बनाय कै आयै, नृप अंबर पहरन मन भाए, जूरोके चले नृपतीके पास, पहिरावनी लैवकी आस. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034838
Book TitleGujaratioe Hindi Sahityama Aapel Falo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Pitambardas Derasari
PublisherGujarat Varnacular Society Ahmedabad
Publication Year1937
Total Pages72
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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