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[२१] नास्तिस्यमावाद् यश्चापि न तर्पयति वै सुतः । पिबन्ति देहरुधिरं पितरो वै जलार्थिनः .
भट्टारकजी ने भी, इस त्रिवर्णाचार में, तर्पण को स्नान का एक अंग बतलाया है । इतना ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के यहाँ स्नान के जो पाँच अंग-संकल्प, सूक्तपठन मार्जन, अघमर्षण * और तर्पणमाने जाते हैं उन सबको ही अपनाया है । यथा:संकल्प [मः] सूत्र [क] पठनं माखनं चाघमर्षणम् । देवादि [वर्षि] तर्पणं चैवपंचांग स्नानमाचरेत् स्नानं पंचांगमिष्यते]
॥२-१०५॥ यह श्लोक मी किसी हिन्दू ग्रंथ से लिया गया है । हिन्दुओं के
* 'अघमर्षण' पापनाशन को कहते हैं। हिन्दुओं के यहाँ यह स्मानांगकर्म पापनाशन क्रिया का एक विशेष अंग माना जाता है। वेद में 'ऋतं च सत्यं' नामका एक प्रसिद्ध सूक्त है, जिसे 'अघमर्षण सूक्त' कहते है और जिसका ऋषिःभी 'अघमर्षण' है। इस सूक्त को पानी में निमग्न होकर तीन बार पढ़ने से सब पापों का नाश हो जाता है और यह उनके यहाँ अश्वमेध या की तरह सब पापों का नाश करने वाला माना गया है, जैसा कि 'शंखस्मृति' के निम्नवाक्यों से प्रकट है:
ततोऽम्मसि निमनस्तु त्रिः पठेदघमर्षणम् ।। १-१२ ।। यथाऽश्वमेघः ऋतुराष्ट्र सर्वयानोदनः । तथाऽप्रमर्ष सूक्तं सर्वपापप्रणाशनम् ॥ १-१३ ॥ वामन शिवराम ऐपटे में भी अपने कोश में इस सूक्त की उक्त माम्यता का डोज किया है, और लिखा है कि 'गुरुगनी, माता, तथा भगिनी मादि के साथ सम्भोग जैसे घोरतम पाप भी इस सूक्त को तीन बार पानी में पढ़ने से नाश को प्राप्त हो जाते है, पेसा कहा जाता?' पथा
The most heinous crimes, such as illicit intercourse with preceptor's wife, one's own mother,sister,daughter in-law etc.. are said to be expiated by repeating this सक thrice in water.
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