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________________ [१६८] की जैन स्त्री के-पुनर्विवाह के समय स्त्री को पति के दाहिनी और बिठं; लाना चाहिंय,' जिससे यह भी ध्वनि निकलती है कि अशूद्रा अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य जाति की जैन स्त्रियों के पुनर्विवाह के समय वैसा नहीं होना चाहिये-वे बाई और बिठलाई जानी चाहिये । अस्तु आपका वह पूरा वाक्य इस प्रकार है 'गर्भाधाने पुंसवने सीमन्तोन्नयने तथा। घधू प्रवेशने शूद्रा पुनर्विवाहमण्डने ॥ पूजने कुलदेव्याश्च कन्यादाने तथैव च । कर्म खेतेषु वै भायां दक्षिणे तूप वेशयेत् ।। -८ घाँ अध्याय ।। ११६–११७ ॥ इस वाक्य के 'शूद्रा पुनर्विवाहमण्डने' पद को देख कर सोनीजी कुछ बहुत ही चकित तथा विचलित हुए मालूम होते हैं, उन्हें इसमें मूर्तिमान विधवाविवाह अपना मुँह बाए हुए नजर आया है और इसलिये उन्होंने उसके निषेत्र में अपनी सारी शक्ति खर्च कर डाली है। वे चाहते तो इतना कहकर छुट्टी पा सकते थे कि इसमें विधवा के पुनर्विवाह का उल्लेख नहीं किन्तु महज शूद्रा के पुनर्विवाह का उल्लेख है, जो सधवा हो सकती है । परंतु किसी तरह का सधवापुनर्विवाह भी आपको इष्ट नहीं था, आप दोनों में कोई विशेष अन्तर नहीं देखते थे और शायद यह भी समझते हों कि सधवाविवाह के स्वीकार कर लेने पर विधवाविवाह के निषेध में फिर कुछ बल ही नहीं रह जाता । और विधवाविवाह का निषेध करना आपको खास तौर से इष्ट था, इसलिये उक्त पद में प्रयुक्त हुए 'पुनर्विवाह' को 'विधवाविवाह' मान कर ही आपने प्रकारान्तर से उसके निषेध की चेष्टा की है । इस चेष्टा में भापको शूद्रों के सत् , असत् भेदादि रूप से कितनी ही इधर उधर की कल्पनाएँ करनी और निरर्थक बातें लिखनी पड़ी-मूल ग्रंथ से बाहर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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