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________________ [१९९] महारकजी का कोई भापत्ति नहीं ) कि ससुराल में चौथे दिन तक हो रहना चाहिये ॥ १७३ ।। चौथी रात को-चतुर्थीकर्मादिक के समययदि वरके दोष (पतितत्व -नपुंसकत्वादिक) मालूम हो जाय तो पिता को चाहिये कि वर को दी हुई-विवाही हुई अपनी पुत्री को फिर से किसी दूसर निर्दोष वर को दे देवे-उसका पुनर्विवाह कर देवे-ऐसा बुद्धिमानों ने कहा है ॥१७४॥ कुछ विद्वानों का ऐसा भी मत है (जिस पर भी भट्टारकजी को कोई आपत्ति नहीं) कि पुत्री का पति के साथ संगम-संभोग-हो जाने के पश्चात् यदि यह मालूम पड़े कि इस सम्बंध द्वारा प्रवरों की--गोत्र शाखाओं अथवा मुनि वंशादिकों की-एकतादि जैसे दोष संघटित हुए हैं तो ( आगे को उन दोषों की जान बूझ कर पुनरावृत्ति न होने देने आदि के लिय ) पिता को चाहिये कि वह अपनी उस दान की हुई (विवाहिता और पुनः हनयानि ) पुत्री का हरण करे पार उम किसी दूसरे के साथ विवाह देवे ॥१७॥ ' कलियुग में लियों का पुनर्विवाह न किया जाय' यह गालव ऋषि का मत है (जिससे भट्टारकजी प्रायः सहमत मालूम नहीं होते ) परंतु दूसर कुछ प्राचयों का मत इससे भिन्न है । उनकी दृष्टि में वैसा निषेध सर्व स्थानों के लिये इष्ट नहीं है, वे किसी किसी देश के लिये ही उसे अच्छा समझते हैं-बाकी देशों के लिये पुनर्विवाह की उनकी अनुमति है।' रहता है और प्रायः वहीं का हो जाता है। सभव है उसी रिवाज़ को इस उल्लंग्न द्वाग इष्ट किया गया हो और यह भी संभव है कि चार दिन से अधिक का निवास ही पद्य के पूर्वार्ध का अभीष्ट हो। परंतु कुछ भी हो इसमें संदेह नहीं कि सोनीजी ने इस पद्य का जो निम्न अनुवाद दिया है वह यथोचित नहीं है-उसे देने हुए उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि पद्य के पूर्वाधं में एक बात कही गई है तब उत्तरार्ध में दूसरी बात का उल्लंग्न किया गया है "कोई कोई प्राचार्य ऐसा कहते हैं कि घर, बधू के साथ चौथे दिन भीसरात में ही निवासरे।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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