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________________ . [१९३] इससे साफ जाहिर है-और पूर्व कथनसम्बन्ध से वह और भी स्पष्ट हो जाता है कि भट्टारकजी ने यह विवाहिता स्त्रियों के लिये पुनविवाह की व्यवस्था की है। तीसरे और चौथे पद्य में उन हालतों का उल्लेख है जिनमें पिता को अपनी पुत्री के पुनर्विवाह का अधिकार दिया गया है, और वे क्रमशः वर के दोष तथा सम्बन्ध-दोष को लिये हुए हैं । पाँचवें पद्य में किसी हालत विशेष का उल्लेग्त नहीं है. वह पुनर्विवाह पर एक साधारण वाक्य है और इसी से कुछ विद्वान् उस पर से विधवा के पुनर्विवाह का भी प्राशय निकालते हैं। परन्तु यह बात अधिकतर 'गालव' नामक हिन्दू ऋषि के उस मूल वाक्य पर अवलम्बित है जिसका इस पच में उल्लेख किया गया है। वह वाक्य यदि खाली विधवाविवाह का निषेधक है तब तो भट्टारकजी के इस वाक्य से विधवाविवाह को प्राय: पोषण जरूर मिलता है और उससे विधवाविवाह का प्राशय निकाला जा सकता है क्योंकि वे गालव से भिन्न मत रखने वाले दूसरे प्राचार्यों के मत की ओर मुके हुए हैं। और यदि वह विधवाविवाह का निषेधक नहीं किन्तु जीवित भर्तृका एवं अपरित्यक्ता सियों के पुनर्विवाह का ही निषेधक है, तब महारकजी के इस वाक्य से वैसा भाशय नहीं निकाला जा सकता और न इस वाक्य का पूर्वार्थ विधवाविवाह के विरोध में ही पेश किया जा सकता है। तलाश करने पर भी अभी तक मुझे गालव ऋषि का कोई पंथ नहीं मिला और न दूसरा कोई ऐसा संग्रहप्रन्थ ही उपलब्ध दुधा है जिसमें गाय के प्रकृत विषय से सम्बन्ध रखने वाले वाक्यों का भी संग्रह के। यदि इस परीक्षालेख की समाप्ति तक भी वैसा कोई ग्रंथ मिल गया--जिसके लिये खोज जारी है तो उसका एक परिशिष्ट में जरूर उम्सेख कर दिया जायगा। फिर भी इस बात की संभावना बहुत ही कम जान पड़ती है कि गालव ऋषि ने ऐमी सबो २५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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