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________________ [ ३ ] लिखने का कोई यंत्रसर नहीं मिल सका । मैं उस वक्त से बराबर ही दूसरे ज़रूरी कामों से घिरा रहा हूँ । आज भी मेरे पास, यद्यपि, इसके लिये काफ़ी समय नहीं है- दूसरे अधिक जरूरी कामों का ढेर का ढेर सामने पड़ा हुवा है और उसकी चिंता हृदय को व्यथित कर रही हैपरंतु कुछ अर्से से कई मित्रों का यह लगातार आग्रह चल रहा है कि इस त्रिवर्णाचार की शीघ्र परीक्षा कीजाय । वे आज कल इसकी परीक्षा 1 को खास तौर से आवश्यक महसूस कर रहे हैं और इसलिये भाज उसी का यत्किचित् प्रयत्न किया जाता है । इस त्रिवर्णाचारका दूसरा नाम 'धर्म-रसिक' ग्रंथ भी है और यह तेरह अध्यायों में विभाजित है । इसके कर्ता सोमसेन, यद्यपि, अनेक पद्यों में अपने को 'मुनि', 'गणी' और 'मुनीन्द्र' तक लिखते हैं परन्तु वे वास्तव में उन आधुनिक भट्टारकों में से थे जिन्हें शिथिलाचारी और परिग्रहवारी साधु अथवा श्रमणाभास कहते हैं । और इसलिये उनके विषय में बिना किसी संदेह के यह भी नहीं कहा जा सकता कि वे पूर्णरूप से धावक की ७ वीं प्रतिमा के भी धारक थे । उन्होंने अपने को पुष्कर गच्छ के भट्टारक गुणभद्रसूरिका पट्टशिष्य लिखा है और साथ ही महेन्द्रकीर्ति गुरु का जिस रूप से उल्लेख किया है उससे यह जान पड़ता है कि वे इनके विद्या गुरु थे । भट्टारक सोमसेनजी कब हुए हैं और उन्होंने किस सन् सम्वत् में इस ग्रंथ की रचना की है, इसका अनुसन्धान करने के लिये कहीं दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। स्वयं भट्टारकजी ग्रंथ के मंत में लिखते हैं * यथा: ...श्रीभट्टारक सोमसेन मुनिभिः ॥ २११५ ·· ॥ " श्रीभट्टारक सोमसेन गणिना ।। ४-२१७ ॥ ... पुण्यासि हैः सोमसेनैर्मुनीन्द्रैः ॥ ६-११८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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