SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१०७] रविवार के दिन स्नानादिक का निषेध । ( ४ ) भट्टारकजी दूसरे अध्याय में यह भी लिखते हैं कि रविवार (इतवार ) के दिन दन्तधावन नहीं करना चाहिये, तेल नहीं मलना चाहिये और न स्नान ही करना चाहिये । यथा अर्फवारे व्यतीपाते संक्रान्तौ जन्मवासरे । वर्जयेहन्तकाष्ठं तु बतादीनां दिनेषु च ॥ ६६ ॥ अष्टम्यां च चतुर्दश्यां पंचम्यामर्कवासरे । बतादीनां दिनेष्वेव न कुर्यात्तैलमर्दनम् ॥ ८१ ॥ तस्मात्स्नानं प्रकर्तव्यं रविवारे तु वर्जयेत् ।। ६७ ।। तेलमर्दन की बाबत तो खैर आपने लिख दिया कि उससे पुत्र का मरण हो जाता है परन्तु दन्तधावन और स्नान की बाबत कुछ भी नहीं लिखा कि उन्हें क्यों न करना चाहिये ? क्या उनके करने से रवि महाराज ( सूर्यदेवता ) नाराज हो जाते हैं ? यदि ऐसा है तब तो लोगों को बहुत कुछ विपत्ति में पड़ना पड़ेगा; क्योंकि अधिकांश जनता रविवार के दिन सविशेष रूप से स्नान करती है-छुट्टी का दिन होने से उस दिन बहुतों को अच्छी तरह से तेलादिक मलकर स्नान करने का अवसर मिलता है । इसके सिवाय, उस दिन भगवान का पूजनादिक मी न हो सकेगा, जो भट्टारकजी के कथनानुसार दन्तधावनर्वक स्नान की अपेक्षा रखता है; तन देवपितरों को भी उसदिन प्यासे रहना होगा जिनके लिये स्नान के अवसर पर भट्टारकजी ने तर्पण के जल की व्यवस्था की है और जिसका विचार आगे किया जायगा; और भी लोक में कितनी ही अशुचिता छा जायगी और बहुत से धर्मकायों को हानि पहुँचेगी%3B बल्कि त्रिवर्णाचार की मानविषयक आवश्यकताओं को देखते हुए तो यह कहना भी कुछ भत्युक्ति में दाखिल न होगा कि धर्मकार्यों में एक प्रकार का प्रलयसा उपस्थित होजायगा। मालूम नहीं भट्टारकजीने फिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy