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________________ [१०६] अर्थग्लानिर्भवति च गुरौ भार्गधे शोकयुक्त स्तैलाभ्यंगात्तनयमरणं सूर्यजे दीर्घमायुः ॥ २-सन्तापः कीर्तिरल्पायुर्धनं निधनमेव च । प्रारोग्यं सर्वकामाप्तिरभ्यंगाद्भास्करादिषु ॥ इनमें से पहला पद्य ' ज्योतिःसारसंग्रह' का और दूसरा 'गारुड' के ११४ वें अध्याय का पद्य है । दोनों में परस्पर कुछ अन्तर भी हैपहले पद्य में बुध के दिन तेल मलने से पुत्र लाभ का होना बतलाया है तो दूसरे में धनका होना लिखा है और यह धनका होना भट्टारकजी के पद्य के साथ साम्य रखता है; दूसरे में शनिवार के दिन सर्वकामाप्ति ( इच्छाओं की पूर्ति ) का विधान किया है तो पहले में दीर्घायु होना लिखा है और यह दीर्घायु होना भी भट्टारकजी के पद्य के साथ साम्य रखता है । इसीतरह शुक्रवार के दिन तेलमर्दन का फल एक में 'आरोग्य' तो दूसरे में ‘शोकयुक्त' बतलाया है और भट्टारकजी उसे 'वित्तनाश' लिखते हैं जो शोक का कारण हो सकता है। रविवार और गुरुवार का फल दोनों में समान है परन्तु भट्टारकजी के पद्य में वह कुछ भिन्न है और सोमवार तथा मंगल को तेल लगाने का फल तीनों में ही समान है। अस्तु; इन पद्यों के सामने आने से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि इस तेलमर्दन के फल का कोई एक नियम नहीं पाया जाता-वैसे ही जिसकी जो जी में आया उसने वह फल, अपनी रचना में कुछ विशेषता अथवा रंग लाने के लिये, एक दूसरे की देखा देखी घड़ डाला है। बहुत संभव है भट्टारकजी ने हिन्दू ग्रंथों के किसी ऐसे ही पद्य का यह अनुसरण किया हो अथवा जरूरत बिना ज़रूरत उसे कुछ बदल कर या ज्यों का त्यों ही उठाकर रख दिया हो । परंतु कुछ भी हो, इसमें संदेह नहीं कि उनका उक्त पद्य सैद्धांतिक दृष्टि से जैनधर्म के विरुद्ध है और जैनाचार. विचार के साथ कुछ सम्बंध नहीं रखता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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