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________________ [१०८] क्या सोचकर रविवार के दिन स्नान का निषेध किया है ! ! जैन सिद्धान्तों से तो इसका कुछ सम्बंध है नहीं और न जैनियों के आचार-विचार के ही यह अनुकूल पाया जाता है, प्रत्युत उसके विरुद्ध है। शायद भट्टारकजी को हिन्दूधर्म के किसी ग्रंथ से रविवार के दिन स्नान के निषेध का भी कोई वाक्य मिल गया हो और उसी के भरोसे पर आप ने वैसी आज्ञा जारी करदी हो । परन्तु मुझे तो मुहूर्तचिन्तामाण आदि ग्रंथों से यह मालूम हुआ है कि 'रोगनिर्मुक्त स्नान' तक के लिये रविवार का दिन प्रशस्त माना गया है । इसीसे श्रीपतिजी लिखते हैं-'लग्ने चरे सूर्यकुजेज्यवारे......स्नानं हितं रोगविमुक्तकानाम् । हाँ, दन्तधावन का निषेध तो उनके यहाँ व्यासजी के निम्न वाक्य से पाया जाता है जिसमें कुछ तिथियों तथा रविवार के दिन दाँतों से काष्ठ के संयोग करने की बाबत लिखा है कि वह सातवें कुल तक को दहन करता है, और जो आन्हिकसूत्रावलि में इस प्रकार से उद्धृत है प्रतिपदर्शषष्ठीषु नवम्यां रविवासरे । दन्तानां काष्ठसंयोगो दहत्यासप्तमं कुलम् ॥ परंतु जैनशासन की ऐसी शिक्षाएँ नहीं हैं, और इसलिये मट्टारकजी का उक्त कथन भी जैनमत के विरुद्ध है। घर पर ठंडे जल से स्लान न करने की प्राज्ञा । (५) भट्टारकजी ने एक खास आज्ञा और भी जारी की है और वह यह है कि 'घर पर कभी ठंडे जल से स्नान न करना चाहिये। आप लिखते हैं अभ्यङ्गे चैव मांगल्ये गृहे चैव तु सर्वदा। शीतोदकेन न स्नायान्न धाय तिलकं तथा ॥ ३-५५ ॥ अर्थात्-तेल मला हो या कोई मांगलिक कार्य करना हो उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034833
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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