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( ८९) और अंधबधिर कष्ट सहन करता हुआ मरकर दुर्गतिमें पहुंचा । ठीकही है:
असमंजस बोले घणुं, परने दिये कलंक । ते मूरख किम छूटशे, पापी हुआ निःशंक ॥१॥
अब गुनतीसवीं पृच्छाका उत्तर एक गाथाके द्वारा
कहते हैं
उचिट्ठमसुंदरयं भत्तं तह पाणियं च जो देह । साहूणं जाणमाणो भुपि न जिजए तस्स ॥४४॥
अर्थात्-जो पुरुष उच्छिष्ट, झूटे, बिगडे हुए, ऐसे अशुभ आहार जो किसी भी काममें न आवे ऐसे भात पानी जान बूझ कर साधु मुनिराजको देता है, उस पुरुषको खाया हुआ अन्न हजम होता नहीं अर्थात् अजीर्णका रोग होता है (४९) जिस प्रकार श्रीवासुपूज्यस्वामीके पुत्र मघवाकी पुत्री रोहिणी थी वह पूर्वभवमें दुगधा नामसे प्रसिद्ध हुई, कुष्टादिक रोगसे पीडित हुई। अतः उसने अनेक भवके पहले कडूआ तुंबा बहराया था, उस की कथा कहते हैं:
" चंपानगरीमें श्रीवासुपूज्यस्वामीका पुत्र मघवा नामक राजा राज्य करता था । उसको सदाचारिणी और सुशीला लखमणा नामा राणीथी । उसको आठ पुत्र हुए। ऊपर एक राहिणी नामा पुत्री हुइ । वह मातापिताको
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