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(९०) अत्यंत वल्लभाथी, अतः उसके जन्मके समय राजाने बहुत दान मान दिये । वह बडी हुई और चोसठ कलाएं सीखी। रूपवंत, लावण्यवती, सौभाग्यवती और गुणवती हुई। उसे यौवनावस्था प्राप्त हुइ देख कर राजा चिंतन करने लगा कि-इसके योग्य वर मिले तो अच्छा । अतः स्वयम्बर मंडप रचाया जाय । यह लडकी मनोज्ञ वरको पसंद कर ले तो फिर पश्चात्ताप न हो । ऐसा विचार कर स्वयंवर मंडप रचाया । कुरु, कौशल, लाट, कर्णाट, गौड, वैराट, मेदपाट, नागपुर, चौड, द्राविड, मगध, मालव, सिन्धु, नेपाल, डाहल, कोंकण, सौराष्ट्र, गुर्जर, जालंधर आदिक चारों दिशाओंमेंसे राजकुमारोंको बुलाये। सर्व राजा स्वयंवरमें आ कर बैठे । उसी समय रोहिणी राजकुमारी भी स्नान विलेपन करके, क्षीरोदक-श्वेतवस्त्र पहन कर हीरा, मोती, माणिकके आभरणसे अलंकृत हो कर मानो देवलोक मेंसेही उतर कर आइ हो ऐसी अप्सराके सदृश सुरूपा रोहिणी पालखीमें बैठ कर सखियोंके वृंदसे परिवेष्टित हो कर वहां आयी। वहां प्रतिहारी दासीने राजकुमारोंके नाम, गोत्र, गुण, बल, देश, गाम, सीम पृथक् २ वर्णन करके कह सुनाये व समझाये । अंतमें राजकुमारीने नागपुरके वीतशोक राजाके अशोक नामक कुमारके कंठमें वरमाला आरोपित की। योग्य वर पसंद करनेसे सर्व को हर्ष हुआ । पिताने विवाह किया। दूसरे सर्व राजाको हाथी, घोड़े, वस्त्र, भोजन और तंबोल दे कर सबको सम्मानित किये । सब अपने २ स्थानकको गये । तथा अशोककुमारको भी सुवर्ण मोतीके आभरण प्रमुखके दान-मान दे कर रोहिणी सहित नागपुरको
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