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कि कदापि स्वप्न में भी हमने हमारे ठाकुरका बुरा चिन्तन नहीं किया है । ऐसी उनकी बात सुनकर राजाने वीरमको बुला कर पूछा, तब धूर्त, पापी, दुष्ट चित्तवाला वीरम बोला कि, महाराज ! यह बात बिलकुल ही सच्ची है । मैंने अपने कानसे सुनी है । राजाने भी उसका कथन सत्य मान कर उन दोनोंको दण्डित किये ।
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, फिर एक दफे वीरमका पडोसी ग्रामांतरको गया था, वह वापिस घरको आता था । उसे मार्ग में वीरम मिला | पडोसीने वीरमको अपने घर सम्बन्धी सुख समाधिके समाचार पूछे । तब दुष्ट वीरमने कहा कि, कामदेव नामक वणिक तुम्हारे घर में निरंतर आता है, और तुम्हारी खी उसके साथ बहुत स्नेह करती है, रमती है । यह बात सुन कर सेठ कामदेव के ऊपर कोपित हुआ, और राजाके समीप जा कर सब बात कही । राजाने कामदेवको बुला कर उसका सर्वस्व लूट कर दंडित किया ।
वीरम ऐसा पाप करता, व असत्य बोलता, परनिंदा करता व लोगों के ऊपर खोटे कलंक चढाता था । एक दिन किसी क्षत्रियने उसको अच्छी तरह पीटा, जिसकी पीडासे बहुत दिनों तक दुःख भोग कर मृत्यु पा कर तेरे यहां पुत्ररूपसे उत्पन्न हुआ है । वह अनसुना व अनदेखा जनापवाद बोला है, जिससे जन्मांध और बधिर हुआ है । यह जीव बहुत संसार रुलेगा । ऐसी बात गुरुमुख से श्रवण कर मातपिता धर्मकरने में प्रवृत्त हुए ।
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