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(८७ ) एक दफे कोई ज्ञानी महाराज वनमें पधारे, उनको वंदना करनेके लिये सब लोग गये। वंदना कर बैठे, तब ज्ञानबलसे जान कर गुरु बोले कि-हे गुणदेव सेठ ! तुम. तुम्हारे अंधबधिर लडकेके लिये बहुत दुःखी मत हो । क्योंकि किये हुए कर्म इंद्रसे भी दूर नहीं हो सकते हैं। अपने २ किये हुए पुण्य पाप सब कोई भोगते हैं, ऐसी गुरुकी बानी सुन कर सब लोग कहने लगे कि, देखो इन मुनि महाराजका कैसा ज्ञान है ? कैसा परहितचिंतन है ? कैसा मैत्रीभाव है ? इत्यादि प्रशंसा करने लगे।
फिर सेठने पूछा कि हे महाराज : किस पापकर्मके उदयसे मेरे पुत्रको अंधत्व और बधिरत्वकी प्राप्ति हुई है ? तब ज्ञानी गुरु बोले कि इसी नगरमें वीरम नामक कुनबी रहता था, वह महा अधर्मी, असत्यभाषी, अन्यायी, परके दोषोंको सुननेवाला, परदोष प्रकाशक, परनिंदा करनेवाला और कूडे कलंकका चढानेवाला इत्यादि दुष्ट कोका करनेवाला था ।
एकदिन गांवके राजाके साथ किसी निकटवर्ती राज्यके राजाको वैर हुआ । उसका निरन्तर राजाको भय रहता था। उस समयमें दो पुरुषोंको अन्योऽन्य गुप्त बातें करते देख कर वीरमने कोटवालके पास जा कर कहा कि, अमुक दो शख्स शत्रु राजाको यहां बुलानेकी बातें कर रहे थे। यह बात श्रवण कर कोटवालने उन दोनों शख्सोंको पकड कर राजाके समक्ष खडे किये । राजाके पूछनेसे वे कहने लगे कि महाराज ! हम हमारे घर सम्बन्धी बातें कर रहे थे, हम शपथपूर्वक कहते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
को बैर हुआ दो पुरुषापास जा कर