________________
(६६) देवशक्तिको धारण करता है। ऐसा सोच कर अभयसिंहको एक देश प्रदान किया, और सामंतको भोजन करा कर व शिरपाव दे कर विदाय किया। वह भी राजाको नजराणा दे कर व शीख ले कर अपने देश को गया।
एकदा उस नगरके उद्यान में चार ज्ञानके धारक श्रुतसागर नामक आचार्य पधारे। यह सुन कर राजा परिवार सहित उनकी वन्दना करनेको गया । देशना सुनने के पश्चात् धर्मसिंहने पूछा कि हे महाराज ! मेरे पुत्र अभयसिंहने ऐसा कौनसा पुण्य किया है कि जिसके उदयसे यह महा साहसिक हुआ है ? और छोटे पुवन कौन कुकर्म किये हैं कि जिससे वह महा भीरू हुआ है ?
गुरु कहने लगे कि-इसी नगरमें एक पूरण व दूसरा धरण-इस नामके दो आहीर थे । उनमेंसे पूरण ती बहुतही दयावन्त था, धर्मात्मा था, सर्व जीवोंकी रक्षा करता था, किसीको त्रसित नहीं करता था, और दूसरा जो धरण था वह मुरघे, तोते, तीतर, मृग आदि जीवोंको पकड़ कर बांधता था, सताता था, किसीकी सुनता नहीं था, जिससे उसको अलग किया। अतः जीवरक्षाके पुण्यसे पूरणका जीव तो तेरे वहां अभयसिंह नामक शूरवीर और भाग्यवंत पुत्र हुआ। नथा धरणका जीव बहुत जीवोंको सता कर तेरा धनसिंह नामक लघु पुत्र भीरू हुआ है। ऐसी पूर्वभव सम्बन्धी वार्ताको श्रवण कर सर्वने श्रावक धर्मका स्वीकार किया। धर्माराधन करके पिता तथा दोनों पुत्र मिल कर तीनों देवलोकमें गये।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com