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सुख कर दंग
कर
बन गया, यहांला
(६४) किसी समय उस नगरके करीब एक सिंह आया जान कर उस रास्तेसे कोई भी मनुष्य नहीं निकलता था। तब प्रधानले राजाके पास जा कर विज्ञप्ति की कि-' हे महाराज! सिंहके भयसे रस्ते में कोई मनुप्य नहीं चल सकता है । उस समय राजाने सिंहको मार कर लानेका बीडा फिराया, मगर किसीने उनका स्वीकार नहीं किया। जव अभयसिंहने बीडा लिया और कहा कि-'हे महाराज! आपका आदेश होवे तो मैं अकेलाही जाकर बिहका वध करके लेआऊं । और लोगों को सुख कर दंगा । ऐला कह कर वनमें गया, वहां तिहको बुला कर भाला मार कर उसका वध किया और वापिस आ कर राजाको प्रणाम किया । राजाने खुश हो कर उसको बड़ा शिरपाव-बहुत वस्त्राभरण दिये ।
पुनः एकदा कोइ एक राजा, कि जिसकी सरहद पृथ्वीतिलकके राजाकी सीमासे मिलती थी, वह पृथ्वी तिलककी आज्ञाका उल्लंघन करता हुआ डाका पा. डता था, गांवोंको लूटता था, उसका निग्रहं करने के लिये राजाने बीडा फिराया, वह भी अभयसिंहने लिया और कटक ले कर दुश्मन सामंतके नगर पहुंचा। और उस राजाके पास दूत भेज कर कहलाया कि-हमारे राजाकी आज्ञाको मान्य कर, वरना युद्ध करनेमें प्रवृत्त होजाओ। तब सामंतने कहा कि आगे भी कइ दफा राजाका कटक यहां पर आया था और उसको मैने जीत लिया था । उसको दूतने कहा कि-स्वामिन् ! अब अभयसिंह आया है। यह श्रवण कर सामंतने कहा किमुखसे बडाइ करनेसे क्या होगा ? सिंह है या शृगाल
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