________________
( ६३ )
कुकडतित्तरलावे सूअर हरिणे अ विविहजीवे अ । धारे निकाले सो सवकालं हवइ भीरू ॥ ३५ ॥
अर्थात् - जो जीव सर्व प्रकार के जीवोंको अभय देवे, किसीको भय उपजावे नहीं, त्रास पहुंचावे नहीं, किसीको पीडा उपजावे नहीं वह पुरुष है गौतम ! धैर्यवन्त साहसिक होता है। जिस प्रकार पृथ्वी तिलक नगर में धर्मसिंह क्षत्रियका पुत्र अभयसिंह नामक महा धैर्यवान् हुआ (३४) तथा जो जीव मुरघे, तीतर, सूअर, हरिण प्रमुख विविश्व प्रकार के जीवोंको निरन्तर बंधन ताडनादि करे, पिंजरेमें रखे, वह जीव सदैव भीरु होता है उचाटमें रहता है । जिस प्रकार अभयसिंहका छोटा भाई धनसिंह क्षत्रिय भीरु हुआ || ३५ ॥
अब दोनों उत्तर के विषय में अभयसिंह और धनसिंह इन दोनों भाइयोंकी कथा कहते हैं ।
" पृथ्वी तिलक नगर में पृथ्वी तिलक राजा राज्य करता था। उस राजाका सेवक धर्मसिंह क्षत्रिय था, वह जैनधर्म में रक्त था । उसको एक अभयसिंह और दूसरा धनसिंह नामक दो पुत्र थे; परन्तु सर्वके कर्म भिन्न भिन्न होनेसे स्वभाव भी भिन्न २ होते हैं । बडा भाई तो वाघ, सिंह, सर्प, शरभ भूत, प्रेत इत्यादिक जीवोंसे भी डरता नहीं था और दूसरा छोटा भाई जो धनसिंह था वह तो रस्सीको देखनेसे भी साप मान कर डरता था । सहज पत्ता हिलता देखे तो भी भयभ्रान्त होता था ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com