________________
(५०) था। उसली देवदिन्ना नामक स्त्री थी। उसके राजदेव और मोजदेव नामके दो पुत्र थे। उनमें बडा भाई सर्वको प्रिय एवं सुभागी था । आठवें वर्षमें उसने सर्व कलाओंको सीख लिया और अनेक शास्त्र भी पढे, और यौवनावस्था प्राप्त होने पर किसी कन्याके साथ स्वयंवर लग्न किया । वह जहां कहीं जाता था और जिस किसी चीजका व्यापार करता था, उसमें अवश्य लाभ प्राप्त करता था। यहां तक कि-यह पुत्र राजाको भी वल्लभ हो गया।
अब छोटा भाई जो भोजदेव था, वह पहेलेसेही दुर्भागी था । जब वह यौवनावस्थाको प्राप्त हुआ, तब उसके पिताने अनेक सेठोंके पास कन्याकी याचना की; परंतु उसको देनेकी किसीने इच्छा नहीं की। उस समय सेठने किसी एक दरिद्रीको पांचसो सुवर्ण महोर दे कर उसकी कन्याके साथ लग्न करनेका निश्चय किया। उस कन्याके पिताने सोनैयाके लोभसे कन्या देना मंजूर किया; परन्तु कन्या कहने लगी कि,-' मैं अग्निमें प्रवेश करके जल जाउंगी; मगर उस दुर्भागीके साथ शादी नहीं करूंगी' ऐसा हठ ले कर बैठी। बाद में वेश्या को धन दे कर उसके घरको जाने लगा। वहां भी वेश्या ऐसा चिंतन करने लगी कि, किसी भी तरहसे यह यहांसे उठ जावे तो अच्छा । वह जो कुछ व्यापार करता था, उसमें अवश्य नुकसान होता था । मूलगी पूंजी भी प्राप्त नहीं होती थी। इस प्रकार यद्यपि वे दोनों सगे भाई थे, तथापि दोनोंमें महदन्तर था ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com