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(५१) एक दिन कोई ज्ञानी गुरु वनमें पधारे । उनको वन्दना करने के लिये सेठजी दोनों पुत्रोंको साथमं ले कर गये। वन्दना करके धर्मदेशना श्रवण की । तत्पश्चात् सेठने पूछा कि 'हे भगवन् ! मेरे दोनों पुत्रोंमेंसे एक महा सुभागी और दूसरा महा दुर्भागी हुआ है, सो किन किन कर्माके उदयसे हुए ? ।'
__तब गुरु बोले कि:-'हे देवपाल ! संसारमें सर्व जीव अपने २ किये हुए शुभाशुभ कर्मोके फल भोगते हैं । अब तेरे पुत्रोंका वृत्तान्त सुन ।
_ 'इसी नगर में इस भवसे तीसरे भवमें गुणधर और मानधर नामक दो वणिक रहते थे। उनमें गुणधर तो देव, गुरु और साधुओंके प्रति विनीत एवं अक्रोधी था, किसीको कटु वचन नहीं कहता था, और दूसरा जो मानधर था, वह महा निर्गुणी, अहंकारी और साधुओंका तथा धार्मिक पुरुषोंका निन्दक था । महापुरुषोंका उपहास करता हुआ कर्म उपार्जन करता था।
किसी दिन एक साधुने मासखमण तप किया । उस तपके बलसे देव भी आकर्षित हो कर उस तपस्वी की सेवा करने लगे। यह देख कर मानधर उसकी निन्दा करने लगा और कहने लगा कि-' अरे यह पाखंडी मायावी लोगोंको वंचित करने के लिये तप करता है । महत्त्व पानेके लिये कष्ट सहन करता है। इस प्रकार निन्दासे एक देवताने रोका भी, तथापि निंदा
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