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चार पल्योपमके आयुष्य सहित उत्पन्न हुआ । वहाँ से चत्र कर महाविदेह क्षेत्रमें मनुष्यत्व पा कर और दीक्षा ले कर मोक्षमें जायगा
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अब बारहवें और तेरहवें प्रश्न के उत्तर में कहते हैं:
गुरुदेवयताहृणं विणयपरो त सीओ य । न भगेह किंपि बहुयं सेो पुरिलो जायए मुहिओ ॥ २८ ॥ अगुणोषि षिनि धीरेणी कामी । माणी विडयओ को सो जायड़ दूही पुरियो । २९ ॥
अर्थात् - जो पुरुष गुरु, देव और साधु महात्माका विनय करने में तत्पर रहता है और जो आकृतिका शान्त होता है, किसीको कटु वचन नहीं कहता, अर्थात् मर्मयुक्त, निन्दायुक्त तथा अप्रिय वचन नहीं बोलता, वह पुरुष सौभाग्यवन्त होता है । ( २८ ) जो पुरुष गुणरहित होने पर भी गर्वित याने अहंकारी होता हैं, और गुणवन्त-धैर्यवान् ऐसे तपस्वीकी निन्दा करता है, तथा जो मानी अर्थात् जात्यादि मदका करने वाला अभिमानी होता है, एवं जो जिनशासनविडंबक होता है, वह पुरुष दुर्भागी होता है । ( २९ ) जैसे राजदेवका भाई भोजदेव उक्त पापोंके करनेसे दुर्भागी हुआ । उन राजदेव और भोजदेवकी कथा इस प्रकार है:
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" अयोध्या नगरीका सोमचन्द्र राजा सौम्य प्रकृति वाला था। उस नगर में देवपाल नामक एक सेठ रहता
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