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(४३) कुछ समयके बाद बड़ा भारी दुष्काल पडा । उस दुष्कालके समय में बहुधा लोग मांस भक्षणसे गुजारा करने लगे । एक दिन सुनंदकी स्त्रीने अपने पतिसे कहा:'स्वामिन् । आप भी नदी किनारे जाईये, और जाल डालकर मत्स्य ले आइये । जिससे अपने कुटुंबका पोषण हो ।' इन बचनोंको सुनकर वह कहने लगाः'हे प्रिये ! ऐसा कार्य मैं कदापि नहीं करूंगा । ऐसा करने में महती हिंसा होती है । ' स्त्रीने कहा:-' आपको किसी मूंडेने बहकाया मालूम होता है । अच्छा, तुम दूर होजाओ।' इस तरह स्त्रीने बहुत तिरस्कार किया, तब वह जाल लेकर तालाब पर गया । और गहनजलमें जाल डालकर मत्स्य निकालने का प्रयत्न करने लगा। जालमें फंसे हुए मत्स्योंको तडफडाते हुए जब यह देखने लगा, तब इसको बड़ी दया आने लगी । और उस दयाके कारण उन मत्स्योंको वापस पानीमें धीरेसे डाल देता था। दो दिन तक इसने इस प्रकार प्रयत्न किया। तीसरे दिन इस तरह करते हुए एक मत्स्यकी पांख तूट गई । उसको देखकर सुनंद अत्यन्त ही दुःखी होने लगा। वह अपने घर आकर घरके मनुष्योंसे कहने लगा:- मैं कभी भी जीवहिंसाको नहीं करूंगा, जो नरकको देनेवाली है । ' ऐसा कहकर वह घरसे निकल गया । कुछ कालतक अपने नियमको पालनकर वह मरा। वही तू दामनक उत्पन्न हुआ है । मत्स्यकी पांख तोडने के कर्मके उदयसे इस भवमें तेरी अंगुली काटी गई।'
इस प्रकार गुरुके मुखसे अपने पूर्वभवको सुनकरके सुनंदको वैराग्य उत्पन्न हुआ । उसने अनशन करके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com