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सार पिंगलचाण्डाल मारनेके लिये आयाही था । उसने समझा कि यह दामनक आया । ऐसा विचार कर उसने झटसे खड्गद्वारा उसको हनन कर दिया । ज्योंही यह बात शहरमें पहुँची, त्योंही हाहाकार मच गया । सागरपोतने जिसको मरवाने के लिये प्रयत्न किया था, वह तो बच गया, और उसके बदले में अपना लड़काही मारा गया । यह सुनकर सागरपोतको पारवार दुःख हुआ । दुःख क्या हुआ, हृदयमें ऐसा आघात पहुँचा, कि जिससे उसकी मृत्युही होगइ । तत्पश्चात् कुटुंबी पुरुषोंने मिलकर दामनकको सागरपोतके घरका मालिक बनाया । दामनक ऐसा धर्मशील था, कि - यौवनावस्था में भी वह विषयों की इच्छा नहीं करता था ।
किसी एक दिन उसने किसी पवित्र साधुसे धर्मोपदेश सुना । उपदेशश्रवणके बाद उसने उस ऋषिसे पूछा:- भगवन् । कृपाकर आप मेरे पूर्वभवका वृत्तान्त सुनाइये ।
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मुनिने उसके पूर्वभवका वृत्तान्त सुनाते हुए कहा:
' इसी भरतक्षेत्रके गजपुरनगरमें सुनंद नामक एक कुलपुत्र था । उसका जिनदास नामक मित्र था । किसी दिन वे दोनों उद्यान में गये । वहाँ कंचनाचार्य नामक एक आचार्यको देख सुनंद अपने मित्रके साथ उनके पास गया । आचार्यने देशना दी, उसमें आचार्यने कहा:' जो मनुष्य मांस खाता है, वह अत्यन्त दुःखोंको भोगता हुआ नरकमें जाता है।' इसको सुन सुनंदने मांसभक्षण नहीं करनेकी प्रतिज्ञा की । और जीवरक्षा में तत्पर हुआ ।
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