________________
(३४) - जैसे किः-उज्जयिनी नगरीमें समुद्रदत्त सेठकी भार्या धारिणी दुराचारिणी थी, वह यज्ञदत्त नामक नौकरके साथ आसक्त होकर व उसके साथ मिलकर अपने पुत्र शिवकुमारके साथ द्रोह करने लगी। अन्तमें उसने उन सबकी हत्या करा डाली और खुद भी मर गई। आगे अनेक भवमें वे अल्पायु पाये । अतः यहां शिवकुमार और यज्ञदत्तकी कथा कहते हैं:
“उज्जयिनी नगरीमें समुद्रदत्त सेठ रहत्ता था । उसकी धारणी नामा स्त्री थी । उसको शिवकुमार नामक पुत्र था और यज्ञदत्त नामक कर्मकर था । किसी एक दिन समुद्रदत्त सेठको रोग उत्पन्न हुआ, और उससे वह मर गया । पीछेसे उसके पुत्रने मृतकार्य किये । कर्मके योगसे धारिणी सेठाणी पहले यज्ञदत्त कर्मकरके साथ लुब्ध हुई । यौवनावस्था में जितेन्द्रिय होना महा दुर्लभ है, उसमें भी कामको जीतनेका कार्य परम दुर्लभ है । पीछे यह कार्य लोकविरुद्ध जान कर शिवकुमार बार बार निषेध करता रहा, तथापि माताने उसका कहना नही माना ।
एकदिन धारिणीने यज्ञदत्तको एकान्तमें कहा कि'मेरा पुत्र शिवकुमार अच्छा नहीं है, अतः जिस प्रकार सूर्य कुमुदिनीका विनाश करता है, और जिस प्रकार नदीका प्रवाह नदीके तटका नाश करता है, एवं जिस प्रकार दावानल वनका नाश करता है, उसी प्रकार शिवकुमार अपना विनाश करेगा। इस लिये गुप्त
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com