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(३३) सुमित्रासेठाणी भी शोक-संताप करती हुइ मृत्युकेवश हुई। पीछेसे लडका दुराचारी-पापिष्ठ हुआ। यह बात जान कर लोगोंने उसे घरसे बाहर निकाल दिया। वह गांवमें इधर उधर भटकने लगा और सातों दुर्व्यसनको सेवता हुआ सर्व अनर्थोका मूल रूप हुआ । उसने राजाकी मानेती महा रूपवंत, कलावान्, सर्व देशोंकी भाषा जाननेवाली ऐसी कामध्वजा नामक वेश्या, कि जिसके साथ राजाका बहुत स्नेहसंबंध था, उसके घरमें प्रवेश किया । राजाके अनुचरोंने उज्झित पुत्रको वेश्याके घर में प्रवेश करते हुए देख कर पकड लिया । और बांध कर राजाके सन्मुख लाये । उस राजाने उसको बड़ी विडंबना पूर्वक मार डाला । मर कर वह पहली नर्कमें उत्पन्न हुआ । वहांसे मर कर वह नपुंसक हुआ है । इस प्रकार अनेक भवपर्यंत नपुंसकत्वके दुःखको सहन करेगा । ऐसा जान कर निलंछन कर्म नहीं करना चाहिए ।' यह सातवें प्रभके उत्तरमें गोत्रासकी कथा कही ।
___ अब आठवें प्रश्नका प्रत्युत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं:जो मारेइ निद्दयमणो परलोअं नेव मन्नए किंचि । अइसंकिलिट्टकम्मो अप्पाऊ सो भवे पुरिसो ॥ २४ ॥
जो निर्दयी मनवाला होकर जीवोंकी घात करे, स्वर्ग मोक्ष प्रमुख परलोकको किञ्चित्मात्र भी माने नहीं, और जो जीव अतिसंक्लिष्ट विरुद्ध कौंको आचरे, वह जीव परभवमें अल्प आयुष्यवाला होता है (२४)
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