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रीतिसे उसको मार डालना चाहिये ।' यह श्रवण कर यज्ञदत्तने कहा:- .
'यह बात युक्त नहीं है, क्योंकि तेरा पुत्र वह मेरा स्वामी है, उसके प्रासादसे अपने दोनों सुखी है। अतएव स्वामीद्रोह करना यह महापापका हेतु है ।'
यह श्रवण कर धारिणी बोली कि-'इसमें पाप क्या है ? यदि वह जीवित रहेगा, तो अपनेको सुखका अंतराय करेगा।' इत्यादि बातें सुन कर विषयांध यज्ञदत्तने भी शिवकुमारको मार डालनेका वचन दिया। अब कपटभावसे धारिणीने अपने पुत्रको कहा कि-' हे वत्स! शस्त्रधारक किसी भी पुरुषका विश्वास मत करना।' फिर एक दिन वह कुमारको कहने लगी कि-' गोवालिक लोग अपने गौओंकी रक्षा अच्छी तरह नहीं करते हैं, अतः तुम दोनों गौओंकी रक्षा करने के लिये जाओ।' यह सुन कर दोनों मनुष्य हाथमें हथियार लेकर जंगलमें गये । दोनों आगे पीछे चलते हैं, एक दूसरेका विश्वास कोइ नहीं करता है। नीचे उतरते हुए एक खाइमें यज्ञदत्तने खड्ग निकाला, वह पीछेसे शिवकुकारने जान लिया; तब वहाँसे भाग कर गोकुल में छिप गया। वहां गोपालकों को सब हाल कह कर उनको सचेत कर रखे।
. संध्याके समय गौओंके बाडे में दोनों शय्या बिछा के सो गये । तत्पश्चात् शिवकुमारने उठकर शय्यामें
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