________________
( १७ )
दृष्टि उस थाल पर पडते ही क्षत्रियोंकी डाढोंका थाल खीर रूप हो गया । उसको वह जीमने लगा; यह देख परशुराम के अंगरक्षक ब्राह्मण उसे मारनेके लिये दौड़े। उनको मेघनाद विद्याधरने मार डाले । परशुराम भी यह हाल सुनकर वहाँ गया और सुभूमको माग्नेके लिये परशु चलाया । मगर उस परशु पर मुमृतको दृष्टि पड़ते ही, जैसे वायुके योग से दीपक बुझ जावे: उसी प्रकार वह परशु अदृश्य हो गया । और सुभूमने परशुराम पर थाल फेंका। वह थाल मिट कर चक्ररत्न हो गया और उसने परशुरामका मस्तक काट डाला ।
परशुरामने जिसप्रकार सात दफे पृथ्वी निःक्षत्री की थी; उसी प्रकार सुभूमने इक्कीस दफे पृथ्वीको निर्ब्राह्मणी की । जहाँ तक उसको मालूम हुआ, एक भी ब्राह्मणको जीवित न छोड़ा । चक्ररत्न के बल से षट् खंड पृथ्वी जीत कर चक्रवर्ती हुआ । तदनन्तर लोभके वशीभूत होकर धातकीखंडका भरतक्षेत्र जीतनेके लिये चर्मरत्न पर सेना चढ़ाकर लवणसमुद्र में चलने लगा । बीचमें अधिष्ठित सर्व देवोंने सहाय देने के बजाय समुद्र में छोड़ दिया । जिससे समुद्र में डूब कर वह मरणके शरण हुआ और अनेक जीवहिंसाके पापकर्म करने के कारण सातवीं नरक में गया ।
77
अब दूसरे प्रश्नका उत्तर एक गाथाके द्वारा कहते हैं
1
तवसंजमदाणरओ पयईए भद्दओ किवालू य । गुरुवयणरओ निचं मरिजं देवेसु सो जायइ || १८ ||
2
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com