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संजमजुआण गुणवंतयाण साहूण सीलकलिआणं । मूओ अवण्णवाए ण टुंटओ पदहियाण ॥ ५३ ॥
अर्थात् - जो जीव, संयमयुक्त क्षमादि गुणवंत, शीलयुक्त ऐसे साधु महात्माका अवर्णवाद बोलता है-निंदा करता है वह जीव भवांतर में मूक यानि अवाक होता है तथा जो जीव अपने पाऊंसे साधुओंको लात मारता है वह जीव भवांतर में लंगडा होता है (५३) जिस प्रकार विटपवासी देवशर्मा के पुत्र अग्निशर्माने महात्माकी निंदा की, जिससे वह मूक हुआ और साधुको धप्पे व लातोंके प्रहार किये जिससे उसी भवमें उसको देवताने शिक्षा दी । वहांसे मर कर नरकमें गया । भवांतर में हीनकुलमें पासड नामक ठूंठा हुआ । उसकी कथा इस प्रकार है ।
“बडोदे नगरमें देवशर्मा नामक ब्राह्मण, जोकि चौदह विद्याका निधान था, रहता था । उसको अग्निशर्मा नामक पुत्र हुआ, बह अनेक शास्त्रों में पारंगत हुआ । ज्यौतिषशामें भी निपुण हुआ, जिससे अपने मनमें बहुत गर्व करने लगा । धर्मवंत, गुणवंत और चारित्र्यवंतकी निंदा करता, उनके दोष बोलता । उसके पिताने शिक्षा दी कि हे वत्स ! ' जातिकुलका मद मत कर । समझदार मनुष्य गर्व नहीं करता है और किसीकी निंदा नहीं करता है । ' इत्यादि बहुतकुछ समझाया परन्तु जिस प्रकार दूधसे धोने पर भी काग उज्ज्वल नहीं होते उसी प्रकार उसने अपने स्वभावको नहीं छोडा ।
परिवारसे परिवेष्ठित
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एकदा अनेक साधुके
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