________________
(१२४ ) ज्ञानी गुरु वहां पधारे । उनको वंदना करने के लिये नगरवासी लोग गये । उन गुरुका माहात्म्य देख व सुन कर अग्निशर्मा कुपित हुआ और लोगोंको कहने लगा कि इस पाखंडी महात्माकी पूजा भक्ति करनेसे क्या लाभ ? यह वेदत्रयीसे बाहर है।
एकदा वह ब्राह्मण अनेक ब्राह्मण लोगोंके देखते हुए गुरुके साथ वाद करनेके लिये आया और कहने लगा कि-तुम क्षुद्र, अपवित्र और निर्गुण हो, तिस पर भी लोगोंके पास पूजा करवाते हो, इसका कारण क्या ? वेदके ज्ञाता ऐसे पवित्र ब्राह्मणोंको दान दे, उनकी . पूजा करे वही जीव स्वर्गमें जाता है। हम लोग यज्ञ करके छाग जैसे जानवरोंको भी स्वर्गमें भेज सकते हैं। इस प्रकार बोलने लगा । उसको एक शिष्यने कहा कि-तू पहले मेरे साथही विवाद कर। मैंही तेरे प्रश्नोंका उत्तर देता हुँ, सुन ले।
प्रथम तू यह कहता है कि तुम शूद्र हो, हम ही ब्राह्मण हैं, यह तेरा कथन अयुक्त है, कहा है कि:
ब्राह्मणो ब्रह्मचर्येण यथा शिल्पेन शिल्पिकः । अन्यथा नाममात्रः स्यादिंद्रगोपस्तु कीटवत् ॥ १ ॥
अर्थात्-ब्रह्मचर्य पाले उसे ब्राह्मण कहना चाहिये। जिस तरह कि शिल्पीके गुणोंसे शिल्पक कहलाता है। यदि ब्रह्मचर्य न हो तो इंद्रगोप कीटके समान नामकाही ब्राह्मण समझना चाहिये ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com