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( ११४ ) पुण्यसार ! मैं तेरे घरको आउंगी। फिर स्वप्नमें घरके चारों कोने में रत्नोंसे भरे हुए सुवर्णके कलश रूप चार निधान देखे । तब पुण्यसारको मालूम हुआ किदेवीने जो कहा था वह सत्य हुआ, परन्तु यदि किसी दुर्जनके वचनसे राजाको यह हाल विदित हो जायगा तो अनर्थ होगा, अतएव पहलेसे मैं खुद ही राजाको यह हाल निवेदन करूं। ऐसा सोच करके राजाके पास निधानका स्वरूप कहा। यह देखनेके लिये राजा खुद पुण्यसारके वहां आया। भंडार देखकर विस्मित हुआ। वहांसे उठवा कर अपने भंडारमें सर्व द्रव्य भेज दिया। फिर दूसरे दिन भी प्रभातके समय पुण्यसारने चार भंडार देखे, और राजाके पास जा कर बात कही। वह भी राजाने पुण्यसारके वहांसे मंगवा कर अपने भंडारमें स्थापित किये । पुनः तीसरे दिनको भी उसी अनुसार चार भंडार देखे और राजाके समीप जा कर जाहिर किया कि महाराज! मेरे यहां उसी प्रकार और भी चार भंडार आये हुए हैं। तब राजाने उनको भी अपने भंडारमें रखवानेका हुकम किया। तब प्रधान बोला कि महाराज! आगे आपने जो दो निधान मंगवा कर भंडारमें रखवाये हैं सो यहां पर मंगवाइये। राजाने भंडार खुलवा कर देखा तो उसमें निधान नहीं थे, तब राजाने कहा कि-ये तो जिसके पुण्ययोगसे निधान आये थे उसीके वहां रहेंगे, मेरे पास रहने वाले नहीं। मैं लोभाधीन हो कर यहां लाया, मगर मेरा वह प्रयास व्यर्थ हुआ।
फिर राजाने उस भंडारगत सर्वद्रव्य पुण्यसारको
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