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( ३४ ) है कि यह कल्पना पुराण द्वारा ही जैनकाव्योंमें, रूपान्तरित होकर घुस गयी है।
(२) कृष्णके गर्भावतरणसे लेकर जन्म, बाललीला और आगे के जीवन-वृत्तान्तोंका निरूपण करनेवाले प्रधान वैदिक पुराण हरिवंश, विष्णु, पद्म, ब्रह्मवैवर्त और भागवत हैं । भागवत लगभग
आठवीं-नौवीं शताब्दीका माना जाता है । शेष पुराण किसी एकही हाथसे और एक ही समयमें नहीं लिखे गए हैं, फिर भी हरिवंश, विष्णु और पद्म ये पुराण पाँचवीं शताब्दीसे पहले भी किसी न किसी रूपमें अवश्य विद्यमान थे। इसके अतिरिक्त इन पुराणों के पहले भी मूल पुराणोंके अस्तित्वके प्रमाण मिलते हैं । हरिवंशपुराण से लेकर भागवतपुराण तकके उपर्युक्त पुराणोंमें आनेवाली कृष्णके जीवनकी घटनाओं को देखनेसे भी मालूम होता है कि इन घटनाओं में केवल कवित्वकी ही दृष्टिसे नहीं किन्तु वस्तुकी दृष्टिसे भी बहुत कुछ विकास हुआ है । हरिवंशपुराण और भागवतपुराणकी कृष्ण के जीवनकी कथा सामने रखकर पढ़नेसे यह विकास स्पष्ट प्रतीत होने लगता है। __ दूसरी ओर जैन साहित्यमें कृष्णजीवनकी कथाका निरूपण करनेवाले मुख्य ग्रंथ दोनों-दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायमें हैं। श्वेताम्बरीय अंग ग्रन्थोंमेंसे छटे ज्ञाता और आठवें अंतगडमें भी कृष्णका प्रसंग पाता है । वसुदेव हिन्डी (लगभग सातवीं शताब्दी, देखो पृ० ३६८, ३६९) जैसे प्राकृत ग्रन्थों में कृष्णके जीवनकी विस्तृत — कथा मिलती है । दिगम्बरीय साहित्यमें कृष्ण-जीवनका विस्तृत
और मनोरंजक वृत्तान्त बतानेवाला ग्रन्थ जिनसेनकृत (विक्रमीय ९ वीं शताब्दी ) हरिवंशपुराण है और गुणभद्रकृत (विक्रमीय ९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com