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संभावना है । और ब्राह्मणपुराणोंमें पर्वतके उठानेका उल्लेख है । तब हमें यह मानने के लिए आधार मिलता है कि कवित्वमय कल्पना और अद्भुत वर्णनोंमें ब्राह्मण मस्तिष्कका अनुकरण करनेवाले जैन मस्तिष्कन, ब्राह्मण पुराणके गोवर्धन पर्वतको तोलने की कल्पनाके सहारे इस कल्पनाकी सृष्टि करली है। ____ पड़ौसी और विरोधी सम्प्रदाय वाला अपने भगवानका महन गाते हुए कहता है कि पुरुषोत्तम कृष्णने तो अपनी अँगुलीसे गोव: धन जैसे पहाड़को उठा लिया, तब साम्प्रदायिक मनोवृत्तिको संतुष्ट करनेके अर्थ जैनपुराणकार यदि यह कहें तो सर्वथा उचित जान पड़ता है कि कृष्णने जवानीमें सिर्फ एक योजनके गोवर्धनको ही उठाया पर हमारे प्रभु महावीरने तो, जन्म होते ही, केवल पैरके 'अँगूठेसे, एक लाख योजनके सुमेरु पर्वतको दिगा दिया ! कुछ दिनों बाद यह कल्पना इतनी मजबूत हो गई, इतनी अधिक प्रचलित हो गई कि अन्तमें हेमचन्द्रने भी अपने ग्रंथमें इसे स्थान दिया। अब
आज कलकी जैनजनता तो यही मानने लगी है कि महावीरके जीवनमें आने वाली मेरुकम्पनकी घटना आगमिक और प्राचीन ग्रंथगत है। ___ यहाँ उलटा तर्क करके एक प्रश्न किया जा सकता है । वह यह कि प्राचीन जैनग्रंथोंमें उल्लिखित मेरुकम्पनकी घटनाकी ब्राह्मणपुराणकारोंने गोवर्धनको उठानेके रूपमें नकल क्यों न की हो ? पै. रन्तु इस प्रश्नका उत्तर एक स्थल पर पहले ही दे दिया गया है। यह स्पष्ट है । जैन ग्रन्थों का मूल स्वरूप कान्यकल्पनाका नहीं है
और यह कथन इसी प्रकार की काव्यकल्पनाका परिणाम है । पौराणिक कवियोंका मानस मुख्य रूपसे काव्यकल्पनाके संस्कारमें ही
गढ़ा हुआ नजर आता है । अतएव यही मानना उचित प्रतीत होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com