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(.२५ ) का जो प्रबल और गहरा असर है, उसका स्पष्टीकरण उपर्युक्त संस्कृतिभेदमें से आसानी के साथ प्राप्त किया जा सकता है ।
(२) घटनाके वर्णनकी परीक्षा । अब दूसरे दृष्टिबिन्दुके संबंधमें विचार करना है । वह दृष्टिबिन्दु, जैसा कि पहले कहा जा चुका है, यह है कि इन वर्णनोंका अापसमें एक दूसरेपर कुछ प्रभाव पड़ा है या नहीं, और इससे क्या परिवर्तन या विकास सिद्ध हुआ है। इस बातकी परीक्षा करना । सामान्यरूप से इस सम्बन्धमें चार पक्ष हो सकते हैं
(१) वैदिक तथा जैन दोनों सम्प्रदायोंके ग्रन्थोंका वर्णन एक दूसरेसे बिलकुल अलग है। किसी का किसी पर कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा है।
(२) उक्त वर्णन अत्यन्त समान एवं बिम्बप्रतिबिम्ब जैसा है अतः वह बिलकुल स्वतंत्र न होकर किसी एक ही भूमिकामें से उत्पन्न हुआ है।
(३) किसी भी एक सम्प्रदायकी घटनाओंका वर्णन दूसरी सम्प्रदायके वैसे वर्णन पर आश्रित है अथवा उसका उसपर प्रभाव पड़ा है।
(४) यदि एक सम्प्रदायके वर्णनका प्रभाव दूसरे सम्प्रदायके वर्णन पर पड़ा ही हो तो किसका वर्णन किस पर अवलम्बित है ? उसने मूल कल्पना या मूल वर्णनकी अपेक्षा कितना परिवर्तन किया है और अपनी दृष्टिसे कितना विकास सिद्ध किया है ?
(१) उक्त चार प्रक्षोंमें से प्रथम पक्ष संभव नहीं है । एक ही देश, एक ही प्रान्त, एक ही ग्राम, एक ही समाज और एक ही कु. टुम्भमें जब दोनों सम्प्रदाय साथ ही साथ प्रवर्त्तमान हों तथा दोनों Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com