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( १८ ) होजाने पर उस नावमें भगवान के साथ बैठे हुए अन्य यात्री भी सकु. शल अपनी अपनी जगह पहुँचे ।
-त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व ११, स. ३, पृ० ४१-४२
(१) एक बार दीर्घ तपस्वी एक (४) एक बार यमुनाके किनारे वृक्षके नीचे ध्यानस्थ थे। वहीं पास | अजमें आग लग गई। उस भयंकर में वनमें किसीके द्वारा सुलगाई हुई | अग्निसे तमाम व्रजवासी घबरा अग्नि फैलते फैलते इन तपस्वीके पैर उठे परन्तु कुमार कृष्णने उससे न में आकर छुई । सहचर के रूप में जो | घबराकर अग्निपान कर उसे शांति गोशालक था वह तो अग्निका उप-| कर दिया। द्रव देखकर भाग छटा परन्तु ये| -भागवत. स्क० १०, अ० १७, दीर्घ तपस्वी तो ध्यानस्थ एवं
श्लो० २१-२५ पृ० ८६६-६७ स्थिर ही बने रहे । अग्निका उपद्रव स्वयं शान्त होगया।
-त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, पृ० ५३ ।
(५) एकबार दीर्घ तपस्वी ध्यान | (५) कृष्णके नाश के लिये कंस में थे। उस समय किसी पूर्व जन्म द्वारा भेजी हुई पूतनाराक्षसी ब्रज की अपमानित उनकी पत्नी और इस में आई । इसने बाल कृष्णको विषसमय व्यन्तरीके रूपमें मौजूद | मय स्तनपान कराया परन्तु कृष्णने कटपूतना (दिम्बराचार्य जिनसेनकृत | इस षड्यंत्रको ताड़ लिया और उसके हरिवंश पुराणके अनुसार कुपतना- स्तनका ऐसी उग्रता से पान किया सर्ग ३५ श्लो ४२ पृ० ३६७) आई। कि जिससे वह पूतना पीडित अत्यन्त ठण्ड होने पर भी इस वैरिणी | होकर फट पड़ी और मर गई । व्यन्तरीने दीर्घ तपस्वी पर खूब ही। -भागवत दशमस्कन्ध, भ० ६,
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