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जलके बूंद उछाले और कष्ट देनेका | श्लो० १-९ पृ० ०१४ प्रयत्न किया । कटपूतना के उग्र परिषहसे यह तपस्वी जब गानसे विचलित न हुए तब अन्त में वह शान्त हुई, पेरोंमें गिरी और तपस्वी की पूजा करके चली गई।
-त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १० सर्ग ३, पृ. ५८ (६) दीर्घ तपस्वीके उग्र तपकी
। (६) एकबार मथुरा। मल्लक्रीड़ा इन्द्र द्वाराकी हुई प्रशंसा सुनकर के प्रसंग की योजना कर कंसने उसे सहन न करने वाला संगम तरुण कृष्णको श्रामंत्रण दिया और नामक देव परीक्षा करने आया। कुवलयापीड हाथीके द्वारा कृष्ण तपस्वीको उसने अनेक परिषह दिये।
| को कुचलवानेकी योजना की परन्तु उसने एक बार उन्मत्त हाथी और | चकोर कृष्णने कस द्वारा नियुक्त कुवल हथिनी का रूप धरकर तपस्वीको | यापीड़को मर्दन करके मार डाला। दन्तशूलसे उपर उछाल कर नीचे
-भागवत दशमस्कन्ध, भ० ४३, पटक दिया। इसमें असफल होने
श्लो० १-२५ पृ. ६४७-४८ पर उसने भयंकर बवण्डर रचकर इन तपस्वीको उड़ाया। इन प्रतिकूल | जब कोई अवसर आता है तो परिषहोंसे तपस्वी जब ध्यानचलित भासपास बसनेवाली गोपियाँ न हुए तब संगमने भनेक सुन्दरी | कट्ठी होजाती हैं, रास खेलती हैं खिंयाँ रची। उन्होंने अपने हाव- और रसिक कृष्णके साथ क्रीड़ा कभाव, गीत नृत्य, वादन, द्वारा त- रती हैं । यह रसिया भो तन्मय पस्वीको चलित करने का प्रयास होकर पूरा भाग लेता है और भक्त किया परन्तु जब इसमें भी उसे सफ- गोपी जनोंकी रसवृत्तिको विशेष उ.
पता म मिली तो अन्त में उसने त. हीप्त करता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com