________________
( १७ ) शान्त हुआ । इन तपस्वीका सौम्य- उद्धार पाया हुआ यह सुदर्शन नामक रूप देखकर, चित्तवृत्ति शान्त होने विद्याधर कृष्णकी स्तुति करके विद्यापर उसे जातिस्मरण झान प्राप्त धर लोक में अपनी जगह चला गया। हुआ । अन्तमें धर्मकी आराधना -भागवत दशमस्कन्ध, अ० ३४, करके वह देवलोक गया। श्लो. ५-१५, पृ० ९१७-१८
-विषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ३, पृ० ३४-४० __ (३) दीर्घ तपस्वी एक बार गंगा (३) एकबार कृष्णका बध करने पार करने के लिये नावमें बैठकर परले के लिये कंसने तृष्णासुर नामक पार जारहे थे । उस समय इन त- असुरको व्रजमें भेजा । वह प्रचंड पत्रीको नावमें बैठा जानकर पूर्वभत्र आँधी और पवनके रूपमें आया। के बैरी सुदंष्ट्र नामक देवने उस कृष्णको उड़ाकर ऊपर लेगमा परन्तु नावको उलट देने के लिये प्रबल प- | इस पराक्रमी वालकने उस असुरका चनकी सृष्टिकी और गंगा तथा नाव गला ऐसा दबाया कि उसकी आँखें को हचमचा डाला । यह तपस्वी तो निकल पड़ी और अन्तमें प्राणहीन शान्त और ध्यानस्थ थे परन्तु दूसरे होकर मर गया। कुमार कृष्ण सकु. दो सेवक देवोंने इस घटनाका पता शल ब्रजमें उतर आए । लगतेही आकर उस उपसर्गकारक भागवत, दशम स्कन्ध, म० ११, देवको हराकर भगादिया। इस श्लो० २४-३० प्रकार प्रचट पधनका उपसर्ग शान्त ।
..... ... .............................
अग्निशालामें रात्रिवास किया। वहाँ एक उग्र आशीविष प्रचंड सर्प रहता था। बुद्धने उम सपं को जरा भी चोट पहुंचाये विना ही निस्तेज कर डालने के लिए ध्यान ममाधि की । सपंने भी अपना तेज प्रकट किया । अन्त में बुद्धके तेजने सर्प के नेजका पराभव कर दिया। प्रात:काल बुद्धने जटिल को निस्तेज वि.या कुमा सप बनाया। यह देखकर जटिल अपने शिष्योंक साथ बुद्धका शिष्य बन गया। यह ऋद्धिपाद या युद्धका प्रानिहाय अमिशय कहा गया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com