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वह देव बालकका रूप धरकर महा- | सुर उस खेलमें सम्मिलित होगया। वीरका घोड़ा बन गया। उसने देवी ! यह कृष्ण और बलभद्रको उड़ा ले भक्तिसे पहाइसा विकराल रूप में जाना चाहता था। वह बलभद्रका बनाया,फिर भी महावीर इससे तनिक | घोड़ा बनाकर उन्हें दूरले गया और मी न हरे और घोडा बनकर खेलने । एक प्रचंड एवं विकराल रूप उसने के लिए आए हुए उस देवको सिर्फ
प्रगट किया । अन्तमें बलभद्रने भय. एक मुट्ठी मार कर मुका दिया। | भीत न होते हुए सस्त मुष्टिप्रहार भन्तमें यह परीक्षक मस्सरी देव भग- किया जिससे उसके मुंहसे खून गिरने बान्के पराक्रमसे प्रसव होकर, उन्हें लगा और उसे मार डाला । अन्त में प्रणाम करके अपने रास्ते चला सब सकुशल वापिस लौटे। गया।
-त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, --भागवत दशम स्कन्ध, ब. पर्ष १०, सर्ग २, पृ. २१.२२ । २०, लो. १८-३०, पृ० ०६८
साधक-अवस्था (१) एकबार दीर्घ तपस्वी (.) कालिय नामक नाग बदमाम ध्यानमें लीन थे। उस समय पमुनाके जलको सहलीला कर डालता शुरूपाणि नामक पक्षने पहले-पहल था। इस उपद्रबको मिटाने के लिए तो इन सपस्थीको नापीका रूप कृष्णने, जहाँ कालिय नाग रहा धारण करके कष्ट पहुँचाया, परन्त था वहाँ जा कर उसे मारा । अब इस कार्यमें वह सफल न हुमा कालिय नागने इस साहसी तथा तो उसने एक विचित्र सर्पका रूप पराक्रमी बालकका सामना किया। धारण करके भगवान्को रंक मारा उसने डंक मारा । मर्म स्थानों में तथा मर्मस्थानों में असह्य वेदना रंक मारा और अपने अनेक फोंसे रत्वा की । पर सब होने पर भी कृष्णको सतानेका प्रपन किया। जब वे म तपस्वी जरा भी । परन्तु इस दुर्दान्त चपळ पाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com