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________________ ६. धर्मशिक्षा. ऑमें इंद्र, राजाओंमें चक्रवर्ती, ज्योतिषोंमें चन्छ, वृक्षोंमें कल्पवृक्ष, ग्रहोंमें सूर्य, और जलाशयों में, समुद्रकी तरह, सब व्रतोंमेंसब धर्मों में सब नियमों में-सब गुणोंमें, दया-अहिंसाही अधिपति पदवीको शोभा रही है, और यही वास्तविक मनुष्यत्व है, इसके सिवाय आदमीका जीवन, व्यवहारमें राक्षसके बराबर मशहूर है, इसलिये छोटे प्राणिओं, और विशेषतः बड़े जानवरोंको तो जरूर दया नजरसे निहालना चाहिये । गौ, भैंस, और बकरो वगैरहकी रक्षा होगी तो भारत की सन्तानकी जो शारीरिक निर्बलता, और दिमागकी कमजोरी, वर्तमानमें बढ़ रही है, वह धीरे धीरे अवश्य पलायन करती जायगी। बड़े जानवरोंकी जो रक्षा करनी है, यह सिर्फ धर्म ही न समझें, बल्कि देशकी उन्नतिका भी पःमसाधन है, जैसे गौकी रक्षा अति आवश्यक समझी जातीहै, वैसे गद हे बैल वगैरहभी अवश्य रक्षित होनेके काबिल हैं, उनसे खेत वगैरहका अत्यावश्यक काम बहुत अच्छा पूरा पडता है । यह दया धर्म कैसा उमदा है ! कि दया, कि दया, और देशका अभ्युदय। हमारे भारत वासियोंको इस बातपर जरूर ध्यान खींचनेकी अत्यावश्यकता है, और देश भक्तोंको, पशुरक्षा पर कमर कसके आहोम प्रवृत्ति करनेकी भूरिभूरि सविनय अन्यर्थना और सूचना है। ___एतावता गृहस्थोंके लिये दयावत पालनेका नियम यह निकला निरपराधि त्रस जीवोंको संकल्प ( हननेकी बुद्धि ) से नहीं माऊँ; मगर उसमें भी, अनिवार्य कारण आ पडे, तो वह बात न्यारी है, इस प्रकार पहिला स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत पूरा हुआ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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