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धर्मशिक्षा पहीका मूल है, दुर्गतिको जन्म देनेवाली है। जो पुरुष, जीवोंको अभयदान देता है, उसको जीवोंसे भय नहीं रहता। अहिंसा, (दया) सब भूतोंकी माता है, अहिंसा, प्राणिओंको हित करनेवाली है, अहिंसा, संसाररूपी मारवाडमें अमृतका तालाव है, अहिंसा, दुःख दावानलको शान्त करनेका भ्रमर-श्याम घन मेघ पटल है, और अहिंसा, भवभ्रमणरुप रोगसे पीडाते हुए लोगोंकी परम औषधी है ।
ऐसा, दया देवीका वात्सल्य रहते पर भी कितने ही गँवार लोग, अपने पुत्रके पोषण के लिये, अथवा लडका पैदा करनके लिये, या अन्य किसी मतलबके लिये देवीके आगे पशुको शस्त्र प्रहारसे मार कर बलिदान चढाते है, परंतु यह महा पापी पन है, अपने पुत्रके लिये पशुके पुत्रको मार देना यह कितनी अधमता, और पागलपन? । आदमी को जानवर मारनेका हुक्म क्या ईश्वरसे मिला है? जिससे कि विना ही विचार जानवरोंके ऊपर एकदम शस्त्र फिराते हैं। क्या जगत्की माता देवी, अपने पुत्रका बलिदान चाहती है ?, देवी, जगत्की माता हो के भी जगत्के अन्तर्गत पशुको (अपने छोटे पुत्रको) मार देना, अपने नजरहीके सामने पशुका गला काटना, क्या पसंद करती है ? इनिज नहीं । देवीको भोग चढाने के लिये और मालपाक मिष्टान्न क्या नहीं मिल सकते, उन्हें क्या कौऐं बिलकुळ खा गये है ? । देवी, पशुके शिरका बलिदान अगर अन्तःकरणसे चाहती हो, तो बतलाईए! उसके पास पशु बांधकर, मन्दिरके द्वार बंदकरने पर, रातको वह, पशुको क्यों भोगमें नहीं लाती? । भक्त लोगोंकी, देवीके पास पशु चढानेकी जो इच्छा वा प्रतिज्ञा थी, वह तो इस प्रकार करनेसे बराबर पूरी हो सकती है, फिर पशुकी जान, फिजूल क्यों लेनी चाहिये, समझो! जीवोंको दुःख देना, जीवोंको मारना,
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