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शिक्षा. निश्चय ही होता है, न कि संशय, तो फिर वह निश्चय, सत्यरूप होने से, कुछ न कुछ प्रमाण ही सिद्ध ठहरता है, प्रमाण में भी, वह, प्रत्यक्ष नहीं हो सकता, यह तो स्फुटही है, रहा, अनुमान, अनुमान वह चीजहै, कि जहाँ जिस वस्तुका प्रत्यक्ष नहीं होता, वहाँ
मरी चीज के (जो कि उसको छोड रहती ही नहीं) द्वारा उसका निश्चय करना, इसी रीतिसे, धूमके दर्शन द्वारा आगका जो सत्य निश्चय, होता है, वह अनुमान ही साबीत होता है, और ऐसा निश्चय, लडके तकभी कर लेते हैं, तो क्या चार्वाकों से नहीं हो सकेगा ?, जब ऐसा निश्चय होना, नास्तिकों को मंजूर है, तो नहीं चाहते हुए भी उनके गलेमें, अनुमान प्रमाण का फांसा बरबर आ गिरा।
इस अनुमान प्रमाणसे भी-ज्ञानादि गुणों द्वारा उनके अनुरूप आश्रयकी सिद्धि होती हुई, मूर्त पौगलिक शरीर आदि. को हटाकर जीव ही में विश्रान्ति लेती है। __आगम प्रमाणसे भी आत्मा बखूबी सिद्ध होता है, और अनुमान प्रमाणकी तरह उसे भी प्रमाण माने बिदुन चार्वाकों (नास्तिकों) और बौद्धको छुटकारा नहीं है। जब सत्य शब्दसे सत्य अर्थका संवाद होता ही है, और दुनिया भरका व्यवहार शब्दद्वारा चला ही करता है, तो फिर शब्दको अप्रमाण, नास्तिक व बौद्ध लोग,काहेको कहेंगे?, ठगनेवाले आदमीके शब्द, यद्यपि अप्रमाण होते हैं, परंतु इसीसे शब्द मात्रमें प्रमाणताका तिरस्कार नहीं हो सकता, वरना प्रत्यक्ष भी प्रमाण नहीं बचेगा, क्या प्रत्यक्ष भी झुठा नहीं होता ?, साँपमें रस्सीका, मृगणिकामें तालावका, बिजली लाइटमें चन्द्रमाका, सफेद कपडमें कागजका, धोले कागजमें कपडेका, वृक्षमें आदमीका, हल्दीमें पीले रंगका जो प्रत्यक्ष होता है, वह क्या सच्चा है ?, नहीं, तो भी जैसे और प्रत्यक्षोंमें संवा
होती हुई नाद गुणों द्वारा
हटाकर जीव
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