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________________ धर्मशिक्षा. जब क्लेश सा नहीं मालूम पडता तो भला ! तीन जगत्का स्वामी धर्म--नाथने क्या अपराध किया, कि उसके सत्कार करनेमें थोडा सा भी कष्ट, असह्य मालूम पडता हुआ, नहीं उठाया जाता । जब धर्म--नाथकी तरफसे सुख सम्पत्तियाँ मिली हैं, और बेफिक्र सुखमय जीवन गुजारते हों ! तो इसकी तरफ कुछ तो खयाल करना चाहिये, समझो ! उपकारीका उपकार भूलना, इसके वाबर मूर्खता और कोई नहीं कही जा सकती। जब हम दुःखके बड़े द्वेषी हैं-दुःखसे हजारों कोस दूर भाग जाते हैं, और सुख--अमृतकी खोजके लिये दिन रात सिर पचन करते हैं, तो हमें पहले चाहिये कि दुःखके कारणोंका तिरस्कार करें. दुःखके कारणोंसे हजारों कोप्त दूर रहें, जब तक अनिष्टके कारणोंका हटाना नहीं होता, तबतक अनिष्ट कभी नहीं हट सकता, समझो ! कि सामग्री रहते अवश्य कार्यका जन्म हो जाता है, इसलिये दुःख पैदा करने वाली सामग्रोको भी हटानेमें, तनिक सा प्रमाद अगर आ जाय, तो उससे सावधान रहना चाहिये सुखके लिये, वाहरके सुखसाधनोंकी सेवा करनी जब आवश्यक समझी जाती है, तो बडा आश्चर्य है कि सुखका मुख्य साधन, और सुखसाधनोंको इकठे करनेवाले, धर्मकी सेवा करनी आवश्यक नहीं समझी जातो; विना सेनापतिके सेनाकी तरह, प्रधान कारणके सिवाय, गौण साधन मण्डली, अपना कतव्य पूरा नहीं साध सकती। यह अनुभव सिद्ध है, कि सामग्री जूटने पर भी कुछ ही विघ्न ऐसा आके पड जाता है कि सघाता हुआ कार्य एकदम बिगड जाता, इसका कारण क्या? यही कारण है कि उद्यम मजबूत करने पर भी धर्मरूपी चन्द्रमामें किसी अधर्म-राहुका आक्रमण जव हो जाता है, तब आध बोचमें कार्यका भङ्ग हो जाता है, इस लिये महानुभावोंको पक्का विश्वास रखना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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