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धर्मशिक्षा. भैंस वगैरह जानवर, जानवर क्यों हुए, आदमी ही क्यों न बने, आदमी, आदमी ही क्यों बने, जानवर क्यों न हुए ?, ईश्वरकी मौज कहोगे, तो हम पूछते हैं कि विना ही अपराध, जीवोंको ईश्वरने जानवर बनाया, या कुछ अपराध समझ कर ?, अगर विना ही अपराध, ईश्वरने जीवोंको जानवर बना दिया, तो यह बडा जुल्म, विना अपराध दुःख देना, यह किस सृष्टिका कानून ईश्वरने अपने दफतरमें आंक दिया, यह तो सिर्फ मुख पुराणकी गप्प है । कुछ अपराधसे प्राणियों को जानवर बनाया अगर कहोगे, तो साथ साथ यह भी जरा सा कह दें कि किस बातके अपराधसे?, और वह अपराध, जानवर ही जीवोंने किया, और दूसरे मनुष्य जीवोंने क्यों न किया ? । और भी अपराध करनेको बुद्धि, जीवोंको ईश्वरको तरफसे मिली थी, या जीवों में यों ही जाग उठी थी?, अव्वल तो ऐसी, अपराध अथवा पाप करनेको बुद्धिको, इश्वरको चाहिये कि वह हटाता रहे, बुरी बुद्धिका जन्म किसी प्राणीमें न होने दे, जब ईश्वर, सुख दुःख-देनेके व्यवसायमें पंडिताई चलाता रहता है, तो फिर यह ताकत ईश्वरमें नहीं है कि लोगोंकी दुर्बुद्धिको पैदा होती हुई रोक दे ?, पाप करते हुए पुरुष को, ईश्वर अगर देख ही रहा है, और अनंत शक्ति धारी है, तो फिर, उसे पाप कर्मसे क्यों न हटाता ?, क्या पाप कर्म कराके जीवोंको शिक्षा देना ईश्वर उचित समझता है ? यदि यही बात हो, तो ईश्वर महा अधम ठहरेगा, यह किसके घरका न्याय कि जानते-देखते हुए भी शक्तिमंतको, आदमीसे पापकर्म बंद न करवाना, जान बुझके उसे पाप-कर्म करने देना,
और पीछेसे उसे उसके पापका फल देना। राजा महाराजा लो. गोंको तो मालूम न रहनेसे चोरी-बदमाशी करते हुए, लोगोंसे बुरा कर्म छोडवाना नहीं हो सकता, आखिरमें मालूम पड़ने पर,
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