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________________ धर्मशिक्षा हो तो बतलाईए ! धर्म से सुख पैदा होता है, या पापसे ? , अथवा स्वाभाविक ही?। पाप से सुख पैदा होना, कोई, गदहातक भी नहीं मान सकता, अन्यथा सजन लोगोंका नरकमें और दुर्जनोंका स्वर्गमें जाना कौन रोकेगा ? । मार पीट करना, बदमाशी करना, दगाबाज करना, येही धर्मकी रूप रेखाएँ किससे आलिखित न हो सकेंगी, अर्थात् संसार भोग, मृषावाद, बदमाशी वगैरह अनायास सुगम प्रवृत्तियाँ ही अगर, पुण्यमें यानी सुख उपार्जन में शामिल हैं, तो इस सुख मार्ग में किसका संचरना दुर्घट होगा, किस आदमी को, ये कर्म, दुष्कर होंगे?, ज. ब, भूलसे भी ऐसे कामोंमें जीवोंकी शीघ्रही प्रवृत्ति हुआ करती सबको विदित है, तो कहिये ! नरक गतिको फिर कोन सम्हालेगा, सभी स्वर्गमें क्यों दाखिल न हो सकेंगे ? । ___ स्वभावसे सुख दुःखका होना तो कौन महामति मान सकता है ? नियम सिवाय, सुख दुःखकी व्यवस्था, जो सभीको अनुभव सिद्ध है, कभी नहीं हो सकती, यह तो पागल तक भी समझेगा कि “ सुख प्रिय है, मुख हमेशा मिलता रहे, दुःख अनिष्ट है, दुःखका संयोग कभी न हो" जब यही बात है, और सारी दुनियाका व्यवहार चक्र, इसी लिये चलता है, तो भला! यह कौन कह सकता है, कि योंही विना नियम, अव्यवस्थित सुख-दुःखका संयोग होता है हम पूछते हैं कि जो आदमी सुखी है, वह सुखी ही क्यों ? दुःखी क्यों न हुआ ? , और जो बेचारा दुःखी प्राणी है, वह सुखीही क्यों न हुआ, इसकी वजह क्या, कि इसीको सुख, और इसीको दुःख; दोनों पुरुष एक ही मुहूर्तमें एक ही योगमें, पैसा पैदा करनेका उद्योग करते हैं मगर, एकको पैसा मिल जाता है, जब दूसरा ठंठनपाल सा रहता है, इसका कारण क्या ? । गदहा, चूहा, विल्ली, कुत्ता, गाय, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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