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कविता
___ कितनेही गवाँर लोंग, सांप बिच्छू वगैरह जहरसे भरे हुए जीवोंको देखतेही मारनेकी तय्यारी करते हैं। मगर याद रखो! कि यह बड़ा पाप है । अपना पराक्रम तुल्य बलवालोंके साथ फैलाना चाहिये, दुर्बलोंके आगे शौर्य प्रकट करता हुआ आदमी दलही कहाता है। हम नहीं समझते, कि काटनेवाले जहरी जीवोंको, मारनेवाले लोग, क्या समझकर मारते होंगे ? क्या उनें एकदम देशसे निकालनेके लिये ?, क्या मारनेसे उनका देशनिकाल हो सकता है ?, बतलाना चाहिये ! उन्हें देशनिकालदेनेका अधिकार किसने किसको सौंपा है ? । याद रखो ! कि जिसदेशमें जहरी जीवोंका मारना ज्यादह होता है, उस देशमें उनकी उत्पत्ति ज्यादह हुआ करती है । सृष्टिवादके हिसाबसे जब सब प्राणी ईश्वरके बनाये हुए हैं, तो फिर कौन किसे मार सकता है । एक ईश्वरसे उत्पन्न हुए सभी प्राणी जब भ्राता (भाई) तुल्य हैं, तो उचित नहीं है कि कोई किसे मारे । ईश्वरकी दी हुई चीजको बे प्रयोजन (फिजूल) खींच लेना, अर्थात् दुर्बल जीवोंकी जान निकाल लेनी, यह साफ इरादापूर्वक ईश्वरका गुनहगार होना नहीं है तो क्या है ?।
___“जीवो जीवस्य भक्षणम् " अर्थात् जीव, जीवका भक्षण है, इस बातको पकडे हुए भी दुराग्रही लोग, भक्षणके अयोग्य जहरी जीवोंको क्यों मारें ? । यदि पीडा-तकलीफ देनेसे उनको मारना मुनासिब समझा जाय, तो यह भी बड़ी भूल है, क्योंकि वे जीव, यदि समझपूर्वक काटते हैं, तो समझिये ! कि उनका अपराध, किसी न किसी वक्त पर, जिसको काटा है, उसने जरूर किया होगा, वरना औरोंको छोड अमुकही आदमीको, समझपूर्वक वे कैसे काट सकें ?। अगर विना समझ, योंही संयोगवशात् जहरी जीवोंके तरफसे किसी आदमीको तकलीफ होवे, तौभी उन
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