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________________ धर्मतिक्षा. श्रावक धर्म-बारह व्रत, ये हैं स्थूल प्राणातिपात विरमण १। स्थूल मृषावाद विरमण । स्थूल अदत्तादान विरमण ३ । स्थूल मैथुन विरमण ४ । स्थूल परिग्रह विरमण ५। (ये, पांच अणुव्रत )। दिग् विरति ६ । भोगोपभोग परिमाण ७ । अनर्थदंड विरमण ८ । (ये तीन गुणवत)। सामायिक व्रत ९ देशावकाशिक १० । पौषध ११ । अतिथिसंविभाग १३। (ये, चार शिक्षाव्रत) अर्थ:-गृहस्थोंकों सर्वप्रकारेण जीवरक्षा होनी बहुत कठिन है । पुत्र, मित्र, कलत्र, बन्धुवर्ग, स्थावर-जंगम परिग्रह वगैरहमें फँसा हुआ श्रावक, सर्व प्रकारेण जीव-रक्षा नहीं कर सकता तौभी शास्त्रकारोंका यह फरमाना है कि गृहस्थ लोग भी गृहस्थ धर्मके मुताबिक अवश्य जीवदया पालें, यानी गृहस्थोंको चाहिये कि निरपराधी दो, तीन, चार, और पांच इन्द्रियवाले जीवोंकी रक्षाके लिये बराबर ध्यान देते रहें । यद्यपि, घर दुकान वगैरह बनवानेमें, तथा और भी बहुत आरंभ कार्योंमें त्रस ( दो, तीन, चार, और पांच इन्द्रियवाले) जीवोंकीभी हिंसा होनेका पूरा संभव है, तथापि “जीवोंको मारूं" ऐसी बुद्धि रखकर जीवोंकी हिंसा नहीं करनी चाहिये । अलबत्ते राजा महाराजा लोग, दुश्मनको शिक्षा देते ही हैं, और युद्धमें हजारों मनुष्य, कतल हो जाते हैं, अगर शत्रुके सामने युद्ध न किया जाय, तो राजा लोगोंसे प्रजाका प्रतिपालन नहीं हो सकेगा, उलटा राजाओंके शिरपर प्रजाके क्लेश होनेका पातक आ पडेगा, इसलिये अपराधी शत्रुकी दूसरी बात है, मगर यह बात याद रहे कि निरपराधी जीवोंको संकल्पसे नहीं मारना चाहिथ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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