________________
धर्मशिक्षा.
जैनशासनके प्रभावक-सिद्धसेन दिवाकर, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, हरिभद्रसूरि, अभयदेवसूरि,मद्ववादिसूरि, वादिवेतालशान्तिसूरि, वादिदेवसूरि, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य, मलयगिरि, मलधारिहेमचन्द्र, श्रीहीरविजयसूरि, श्रीयशोविजय उपाध्याय, वगैरह हजारों प्रचंड विद्वान् हुए । एकिले श्री हेमचन्द्राचायेकी की हुई सवालाख श्लोक प्रमाण व्याकरण विषयक रचना अब भी असंपूर्ण मुद्रित-प्रसिद्ध है । इतना ही क्यों ?, न्याय,साहित्य, कोश, स्तुति, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, वैद्यक, वगैरह तमाम विषयोमेंभी उस आचार्यकी अद्वितीय पंडिताई, अन्य शास्त्रों में तथा वर्तमान जमानेमें मशहूर है।
वाचकगण ! पूर्व प्रबन्धसे सामान्यतया धर्मका अनादित्व सिद्ध हो चुका है, और जैनतर धर्मों के साथ जैनधर्मका मुकाबला भी कर चुके हैं, तो अब जैनधर्मके अनादित्व व पवित्रताके विषयमें क्या कोई अक्लमंद शंका कर सकता है ?, हर्गिज नहीं । मैं यह बात दृष्टिरागसे नहीं कहता हूं, परंतु वास्तविक जैनधर्मकी पवित्रता, परमसत्यता, और मोक्षकी साधकता, जैन शास्त्रोंको सुदृष्टि से देखनेसे निश्चित होती है । यद्यपि "अपनी माताको डा. किनी कोई नहीं कहता" यह कहावत जगत्में मशहूर है, तो भी मध्यस्थ-धर्मात्मा पुरुष इस कहावतका अनादर करते हुए अपनी डाकिनी माताको जरूर डाकिनी कहते हैं, और यह भी बात है कि अपनी स्वस्थ माताको स्वस्थ माता कहनेवाला पुरुष, आत्मश्लाघाका पातक नहीं उठा सकता, क्योंकि वस्तुके स्वरूप परिचयमें, वस्तुका वास्तविक हाल प्रकट करना, यह इन्साफसे खिलाफ नहीं है, उसी रीतिसे सत्यधर्मको सत्य कहनेवाला, सत्यधर्मका सत्कार करनेवाला; और सत्यधर्मकी वास्तविक तारीफ करनेवाला मनुष्य, अन्याय प्रवृत्ति नहीं करता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com