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________________ धर्मशिक्षा । आचारांग १ सूत्रकृतांग ५ स्थानांग ३ समवायांग ४ भगवती ५ ज्ञातधर्मकथा ६ उपासकदशांग ७ अंतकृत - अनुत्तरोपपातिका ९ प्रश्न व्याकरण १० विपाक ११ ये ग्यारह अंग साक्षात् गणधर महाराजके बनाये हुए हैं, और इनके सिवाय, बारह उपांग आदि ३४ सूत्र,' जो वर्तमानमें मौजूद हैं, गणधरोंके अतिरिक्त और (तीर्थकरके शिष्य-प्रशिष्य) महर्षिओंके बनाये हुए हैं । ये ४५ सूत्र वर्तमानमें जैन तत्वके मूल खजाने समझने चाहिये। ये ही मूल आगम, मूल सिद्धांत और मूलसूत्र कहलाते हैं । इन सूत्रोंके ऊपर गीतार्थ ऋषिओंने चतुरंगी बनायी हैनियुक्ति, भाष्य, चूनी और टीका । मूलसूत्र सहित ये पंचागी कहलाते हैं। इनके अनंतर ज्यों ज्यों उत्तरोत्तर प्रखर विद्वान् आचार्य हुए, त्यो त्यों उनके द्वारा जैन साहित्यकी बहुत दृषि एवं तरकी होती गई। चोईसवां तीर्थंकर श्री महावीर परमात्माके ग्यारह गणधर हुए, जिनमें प्रथम श्री गौतम स्वामी, और प्रभुके पट्टधर पांचवां गणधर श्रीसुधमास्वामी हुए। वर्तमानमें जितने जैन मुनि है, वे सब सुधर्मास्वामीकी शिष्य सम्प्रदायमें हैं । सुधास्वामीके मोक्षमें जाने बाद उनके पट्टधर श्री जम्बूस्वामी हुए । इनके मोक्ष जाने पर मोक्षका द्वार बंद हो गया, इनके अनंतर पंचम आरेकी सख्त गर्मीके सबबसे कोईभी महात्मा मोक्षमें नहीं जा सका, और नहीं जा सकता जम्बूस्वामीके शिष्यवर प्रभवस्वामी उनके पट्टधर शय्यंभवसूरि, उनके बाद यशोभद्र, संभूतिविजय, भद्रबाहु, तथा स्थूलभद्र हुए। जम्बूस्वामाक बाद य छः महाप, श्रुत कवाल हुए। इसी प्रकार उत्तरोत्तर सुधर्मास्वामीकी शिष्यसंपदा, आज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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