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________________ ४८ धर्मशिक्षा. नाम क्रमसे-सुषमा सुषमा, सुषमा, सुषमादुषमा, और दुषमा सुषमा है। और आगामी छठवे आरेका नाम है-दुषमासुषमा, यानी वह आरा महा दुःखमय है । ये जो अवसर्पिणीके छः आरोंके नाम बताये,वेही नाम उलटेसे उत्सर्पिणीके छ आरोके समझने चाहिये । प्रति उत्सर्पिणी और प्रति अवसार्पणीमें चोईस २ पैदा हुए तीर्थंकर देव, अनंत हो गये, और अनन्त होंगे । तीर्थकर लोगभी पहले हमारी तरह संसारमें भ्रमण किया करते थे, मगर तीर्थकरके भक्के पहले तीसरे भवमें विशिष्ट आत्मबल जगा कर, सुपवित्र तपश्चरणद्वारा तीर्थकर नामकर्म बांधकर, बीचमें स्वर्गका एक भव कर, मनुष्य लोकमें उत्तम कुलमें जन्म लेकर, परम प. वित्र चारित्र-तपके तेजसे कर्मोंको दग्ध करनेके साथ केवलज्ञान (सर्वज्ञता) पा कर, और पुनियाँको तालीम-धर्मकी देके मोक्षमें जा पहुंचे। तीर्थकर देव ही धर्मके मूल उपदेशक होनेसे, इनके वचनमें अणुमात्रभी असत्यताका संभव नहीं हो सकता। राग, द्वेष, अथवा मोहसे असत्य वचन निकाले जाते हैं, जिनमें राग, द्वेष, और मोह, ये तीन दोष मूलसे उखड गये हैं, उनके उपदेशमें किसी प्रकार दोष रहनेकी सम्भावना नहीं की जा सकती। जैन प्रवचनमें तीर्थंकरही ईश्वर शब्दसे व्यवहृत किये हैं। और तीर्थकर तो इसी लिये कहाते हैं, कि वे साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका, इस चतुर्विध संघ (ती)की स्थापना (व्यवस्था) करते हैं । तीर्थकरके भवमें तीर्थकर लोग स्वयंबुद्ध हैं, अतएव वे किसीके उपदेशसे ज्ञान पाके, संसारको नहीं छोडते-दीक्षा नहीं लेते, किन्तु आप ही खुद स्वयंबुद्ध होनेसे समयपर विपुल साम्राज्यको Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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