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धर्मशिक्षा. धर्म विशेष है । भव्य जीव भी अनंत होनेसे, संसारके सब भव्य जीव, मोक्षमें जाने पर, संसार, भव्य जीवोंसे एकदम शून्य हो जायगा, ऐसी शंका नहीं करनी चाहिये ।
अपने २ किये हुए शुभाशुभ कर्मोंके फल भोगते हुए जीव, संसारचक्रमें, देव--मनुष्य-तिर्यञ्च और नरक गतिमें भ्रमण किया करते हैं।
अजीव पदार्थ पांच प्रकारका है। धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय-आकाशास्तिकाय-काल और पुद्गलास्तिकाय। उनमें जड पदार्थ, और जीवोंको गमन करनेमें सहायता करनेवाला धर्मास्तिकाय है। और उनको, स्थिति करनेमें सहायता करनेवाला अधर्मास्तिकाय है । अवकाश देनेवाला आकाश पदार्थ प्रसिद्ध है । पदार्थोंके परिवर्तनमें हेतुभूत, काल पदार्थ मशहूर है । रूप, रस, गंध, स्पर्श, और शब्द, जिसमें रहते हैं, उसे पुद्गल कहते हैं। अतएव शब्दको आकाशका गुण माननेवाले लोगोंकी अल्प बुद्धि प्रकाशित होती है । जो वस्तु अत्यंत परोक्ष है, उस वस्तुका धर्म, प्रत्यक्ष नहीं हो सकता; शब्द यदि आकाशका गुण माना जाय तो आकाश अत्यंत परोक्ष होनेसे, शब्दका प्रत्यक्ष नहीं हो सकेगा। हम नहीं समझते कि शब्दको आकाशका गुण माननेवालोंने, शब्दको परमाणुका गुण, क्यों नहीं माना होगा ?। शब्दको परमा. णुका गुण माननेमें जो डर चमक रहा है, वह डर, उसको आकाशका गुण माननेमें क्या चला जायगा ? हर्गिज नहीं ।
पुण्य-प्रशस्त कर्म वर्गणाका नाम है। जिससे संसारकी संपत्तियाँ जीवको हांसिल होती हैं।
पाप-अप्रशस्त कर्मवर्गणाका नाम है । जिससे संसारमें जीवको बडी विपत्ति उठानी पड़ती है।
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