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शिक्षा हेमंतऋतुमें चना हुआ घट, हैमन्तिक कहाता है, लेकिन वासन्तिक नहीं । भावसे, शुक्लघट शुक्ल है, परन्तु काला नहीं। __.. पाठक मंडल ! इसका नाम स्याघाद है । स्याफादको माननेवाले जैनाचार्योंका, समस्त बौद्धादि दर्शनोंको स्याद्वादरूपी प्रचंड बाणोंसे परास्त करके त्रिलोकोमें फैलाया हुआ अपना प्रताप मशहर है । दरअस्ल में जैनोंके सिद्धान्त पूर्ण मजबूत-परमसत्य होनेसे, उनके उपर किसी दर्शनका आक्षेप सफल नहीं हुआ। जैनदर्शनका सिद्धांत यहाँ लेशमात्र यदि प्रकाश किया जाय, तो भी यह प्रबंध मोटा हो जाता है, इसलिये संक्षेपसे समझना चाहिये कि जैनधर्ममें दो प्रकारके पदार्थ माने गये हैं-जीव, और अजीव । तथा विस्तरसे पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, बंध, निर्जरा,
और मोक्ष, ये 'नवतत्व हैं। __उनमें जीव पदार्थ,चैतन्य स्वरूप है । जीवके विषयमें प्रत्यक्षही प्रमाण मजबूत सबूत है । सब प्राणी मुख दुःखके अनुभवकारा जीवका प्रत्यक्ष करते हैं। वह जीव,अपने शरीर मात्र रहा हुआ है। शरीरसे बाहर जीवको माननेवाले (आत्माको व्यापक माननेवाले) लोगोंकी बड़ी भूल है । क्योंकि आत्माके सुख दुःख वगैरह गुण, शरीरहीमें मालूम पडते हैं । यह बात होही नहीं सकती कि-जिस वस्तुका धर्म,जिस जगहपर मालूम पडा है,वह वस्तु,उस जगहसे अन्य स्थलमें भी ठहर सके । 'दृष्टान्त-जैसे घट, उतनीही जगह पर रह सकता है कि जितनी जगह पर, घंटके रूपादि गुण दिखाई देते हों; उसी रीतिसे आत्माके सुखादि गुण, जब शरीरही में प्रतीत होते हैं, तो फिर शरीरसे अन्यत्रभी आत्माको मानना यह भला ! भ्रम नहीं तो. दूसरा क्या ?। जीव अनन्त हैं, उनमें भव्य जीवही मोसमें जा सकते हैं, अभव्य जीवोंके लिये संसार अनादि और अनंत है। भव्यत्व और अभव्यत्त्व यह आत्माका स्वाभाविक
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